बिहार में पूर्णिया से भागलपुर तक की यात्रा में वहां बह रही हवा लालू और नीतीश को लेकर चल रहे बयार की तमाम बातें साफ कर देती हैं। १५ सालों तक जो सड़क नरक का बोध कराती थी, वह अब सपाट होकर गाड़ियों के चालकों के लिए फेवरेट बन चुकी है। गाड़ियां सरपट दौड़ती हैं और यात्री ये कहने से गुरेज नहीं करते हैं कि नीतीश बाबू को लोग चाहे जो कहें, लेकिन उन्होंने सड़कों की दशा और दिशा सुधार दी। बिहार में फैक्टरियां न लगें या अन्य कोई विकास के काम नहीं हो, कोई बात नहीं, लेकिन सड़कों का सुधर जाना लोगों के दिल में उतर गया है। आज नीतीश उसी विश्वास के दम पर राजनीति के पायदान पर दिन प्रतिदिन ऊपर की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं। लोगों ने बिहार के वे दिन भी देखे, जब टूटी-फूटी सड़कों के किनारे पत्थर और कंकड़ के साथ खराब हो गयी गाड़ियों का जंजाल दिखाई पड़ता था। आज भी वैसा होता होगा, लेकिन संख्या कम हो गयी होगी। नीतीश कुमार ने राजनीति के मामले में एक उदाहरण पेश जरूर कर दिया है। ये कहा जा सकता है कि उनकी तीन साल की सरकार राजद के १५ सालों की सरकार से बेहतर है। इस सरकार ने लोगों को ये कहने का भरोसा दिलाया है कि बिहार बदल रहा है। वहां की हवा में ताजगी का अनुभव है। मैं सिर्फ ये बात नीतीश का समर्थक होकर नहीं कह रहा। ये बातें आम बिहारी कर रहे हैं। मैंने २००० में बिहार और झारखंड दोनों राज्यों के टुकड़े होते देखा। उस समय शायद झारखंड सबसे ज्यादा लाभांश अर्जित करनेवाला राज्य था। बिहार के बारे में कहा गया था कि बिहार में सिर्फ बालू मिलेगा। आज बिहार में उलटी स्थिति है। लोगों के विचार बदल रहे हैं। झारखंड तो दुर्दशा के चरम पर पहुंच कर जार-जार आंसू बहाने को विवश है। आनेवाले सालों में नीतीश जैसा नेता भी नहीं मिल रहा। ऐसा कहा जा रहा है कि एक बड़े नेता की करारी हार होने जा रही है। वह कौन है, ये हम भी जानते हैं, आप भी। डेमोक्रेटिक सिस्टम को लेकर जब बहस होती रहती है, तो जनता के फैसले को लेकर जताया जा रहा संदेह सुशासन बाबू के शासन से दूर हो जाती है। क्योंकि सुशासन बाबू को जनता ने बहुमत देकर सरकार बनाने का मौका दिया। उस मौके का नीतीश सदुपयोग भी कर रहे हैं। बिहार की राजनीति में चाहे जो गणित हो, लेकिन हमारा मानना तो ये है कि नीतीश जैसे सीएम की अन्य राज्यों खासकर झारखंड को भी जरूरत है।
अब इसे हमारी नीतीश की तरफदारी कहें या कुछ और, लेकिन बिहार में बह रही हवा कुछ यही संकेत कर रही है।
Sunday, April 26, 2009
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6 comments:
हम तो सोचते थे बिहार की सड़कें हेमामालिनी के गाल सी हो चुकी होंगी।
सुखद समाचार है। वैसे हेमा मालिनी के गाल की तरह सडक बनाने का सपना देखने वाले लालू उन सडकों को ओमपुरी के गालों की तरह भी न बना सके थे :)
बदलते बिहार को मेरी शुभकामनायें।
फुलवरिया की सड़क भी नई सरकार के बाद ठीक हुई थी!
बिहार को मेरी शुभकामनायें.
सुना तो हमने भी है कि बिहार बदल रहा है। देखते है आगे क्या होता है?
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