जब खुद के घर में आग लगी हो, तो दुनिया को बचाने की चिंता छोड़ घर को बचाने की चिंता करनी चाहिए। लेकिन पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी साहब अब तक कश्मीर का राग अलाप रहे हैं। पाकिस्तानी लीडरशिप को देखकर हताशा का बोध होता है। कब सुधरेंगे। पहले खुद अपने घर के दरकते हिस्सों को संभाल लें, यही बहुत है। भारत के लोग भी उकता कर अब वैसी प्रतिक्रिया नहीं देते, जैसी पहले देते थे।
जानते हैं कि पाकिस्तान का थेथरॉलॉजी खत्म नहीं होनेवाला। अब पाकिस्तान जिस दोराहे पर खड़ा है, वहां खुद वह पहले यह तय करे कि जिस सभ्य दुनिया की दरकार एक आम बाशिंदे को होनी चाहिए, क्या वह ये देश उपलब्ध करा रहा है? बार-बार पाकिस्तानी लीडर अपने संकट का सामना करने के लिए कश्मीर का राग अलापना शुरू कर देते हैं। वहां की लीडरशिप सुधर जाये, इसके आसार कम ही नजर आते हैं। परवेश मुशर्रफ साहब भी जब भारत आते हैं, तो वही राग अलापते हैं।
पाकिस्तान अपनी धरती के भीतर सुलगती आग की गरमी का अहसास कब करेगा, जब खुद दरक कर कई टुकड़ों में बंट जायेगा, तब? स्वात में जो हो रहा है, उसके खात्मे के आसार नजर नहीं आते। पाकिस्तान में जब सिस्टम नहीं काम कर रहा, तो वहां के लीडर खुद दूसरे देश की स्थिति, परिस्थिति पर सवाल उठानेवाले कौन हैं? बचाइये, जरदारी साहब, पहले जलते पाकिस्तान को स्वात की सुलगती आग से बचाइये।
वैसे जब दीया बुझने को होता है, तो धधकता ज्यादा है।
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गांव की कहानी, मनोरंजन जी की जुबानी
अमर उजाला में लेख..
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