Monday, May 11, 2009

आखिर नीतीश को भी तो राजनीति करनी ही है?

१६ तारीख आने के लिए दो-तीन दिन बचे हैं। पूरे मामले को देखकर मन बार-बार पूछता है कि कोई भी जीते क्या फर्क पड़ता है? कोई भी पार्टी स्पष्ट बहुमत नहीं ला रही। वही जोड़-तोड़, वही लुभाना, दुत्कारना, अपसंस्कृति के द्वार पर खड़े दिग्गजों का एक-दूसरे को ललकारना बार-बार देखने को मिलेगा। टीवीवाले भी थक चुके हैं। अब नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे। नीतीश को भी राजनीति करनी है। इसे उन्हें समझना होगा।

नीतीश पूरी जमात में कोई अलग किस्म के नेता नहीं है। बिहार में सुशासन का संकल्प लिया है, लेकिन अगर इसी में मोदी के साथ हाथ मिला लिया, तो कौन सा तूफां खड़ा हो गया है? कांग्रेस ने पासा फेंका था, नीतीश नहीं फंसे। एक खास चैनल यूपीए का पलड़ा झुका बता रहा है। क्या इसे प्रोपेगेंडा का हिस्सा माने। कोई पार्टी या किसी गंठबंधन के स्वरूप की व्याख्या पेचीदा मामला है। उसमें जब हर गुट नीतीश को बुलाने की बात करता है, तो ये मान लेने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि नीतीश इस बार किंग मेकर की भूमिका में रहेंगे।

यूपीए का जादू कहीं न कहीं फीका नजर आ रहा है। इस बार का चुनाव अगर परिवर्तन की लहर नहीं लेकर आया है, तो कम से कम मौन क्रांति का वाहक जरूर बनने का ख्वाब दिखा रहा है, जिसमें एक नया एंगल नजर आ रहा है। बस १६ मई का इंतजार कीजिये।

अब नीतीश के तेवर जहां कांग्रेस विरोधी हुए कि कांग्रेस ने भी कोसी विवाद को लेकर राजनीति शुरू कर दी। ये देश इस बात का गवाह बन रहा है कि कैसे एक पुराने मर चुके विवाद को नयी शक्ल दी जा रही है। ये कोसी फिर उबलेगा, अगर इस बार भी पार्टियां पुरानी रफ्तार पर कायम रहीं। नीतीश चूके नहीं हैं, उन्हें मौका मिलेगा, तो वे और भी नयी कहानी लिख सकते हैं।

4 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

करनी नहीं है, कर रहे हैं।

अभिषेक मिश्र said...

16 May ka hi intejar hai.

उपाध्यायजी(Upadhyayjee) said...

कौन है वो खास चैनल. उसका सेकुलरिज्म का certificate रद्द करवा दिया जाएगा.

डॉ .अनुराग said...

पूरी तरह से आपसे सहमत ...कल से जिस तरह हल्ला मच रहा है बड़ा अजीब सा लग रहा है...क्या मोदी अछूत हो गए है...क्या टाटा की नैनो प्रोजेक्ट जब गुजरात गयी तब लोगो ने टाटा को गलत नहीं बोला ...एयरटेल वाले मित्तल ने भी उनके कसीदे पड़े तब शोर नहीं मचा ....
पाकिस्तान में सिखों पर लगे जार्जिया कर पर क्यों मीडिया में लम्बी बहसे नहीं हुए....प्रभाकरण ओर तमिल कार्ड पर तमिलनाडु की घटिया राजनीती ...ओर सारे दलों की नैतकिता पर बहसे नहीं हुई....तो क्या हमारे देश का मीडिया भी क्या न्यूट्रल नहीं रह गया है...क्यों एक चैनल का राग सब अलापने लगते है ?क्यों कोई चैनल चुनाव में खड़े उन लोगो के बारे में बार बार बताता जो बेदाग है ,अच्छे है ....ओर निर्दलीय खड़े है ...ताकि दुसरे लोगो का मोरल बूस्ट हो .उनका हो....
अव्वल तो हम किसी भी राज नेता को पाक साफ़ नहीं मानते ...जाहिर है सारे राजनीती करने उतरे है....

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