Thursday, May 14, 2009

मुझे मौन नहीं , क्रांति चाहिए बस


बुद्ध की इस मूर्ति को देखिये। चुपचाप मौन साधना में लीन ये क्या बता रही है? एक मौन का वाहक बनकर ये दुनिया को कोई संदेश देना चाहती है।

मौन स्वयं में आकर्षण का केंद्र है। एक चुंबकीय खिंचाव रहता है इस मौन में। मौन से जुड़ी न जाने कितनी कहानियां कही जाती रही हैं। और न जाने कितने किस्से और कहावतें प्रचलित हैं।

क्या इस मौन से स्थिरता को पाया जा सकता है? चलायमान संसार में ये स्थिरता कितनी देर तक और कब तक रहती है। एकाग्र होने और मौन होने में क्या अंतर है? एक बड़ा रहस्य ये भी है कि जब आप मौन होते हैं, तो क्या आपकी सारी सोच खत्म हो जानी चाहिए।

अब दुनियादारी की स्थिति में एक सवाल उठता है कि अगर अधिकांश व्यक्ति इस मौन धारण को इच्छुक हो जायें, तो संवाद की जो कला है, उसका क्या होगा? दुनिया की शुरुआत से मन के अंदर उत्पन्न हो रहे तूफां को शांत करने की कोशिश होती रही है। क्या उस तूफां की दिशा मोड़कर उसकी अनियंत्रति ऊर्जा का सही इस्तेमाल नहीं हो सकता।

उस अनियंत्रति तूफां को दिशाहीन बना देने के कारण ही दुनिया हिंसाग्रस्त है। मौन जैसे पत्थर से उस तूफां को दबा देते हैं। लेकिन अगर नियंत्रण करते हुए आप उस तूफां को दिशा देते हैं, तो वही आपके और समाज के लिए मुक्ति का द्वार खोलती है।

खुद से दूर होकर
प्रयास करते हैं
हमें कोई डिस्टर्ब न करे
डोंट डिस्टर्ब मी के बोर्ड के साथ
दूरी बनाते हैं अपनों से

गंभीरता लाते चेहरे पर
बनाते हैं पर्सनैलिटी
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लेकिन ये कैसा मौन
जब दवा की जरूरत है
कमजोर देह को
दुआ की जरूरत है
दुखती आत्माओं को
रगों में बहता खून हुआ पानी है
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हम मौन धारण कर
बनाते हैं दूरी
कहते हैं हमारी क्या मजबूरी
हम अपनी मस्ती में जी लेंगे
मौन धारण कर
दुखों के घूंट पी लेंगे
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लेकिन... ऐसा कब तक चलेगा
दुनिया में कोई तो ऐसा होगा
जो मौन की इस धारा
को तोड़
आगे बढ़ेगा
ये कहने को
कि
मैं मौन नहीं रख
बदल दूंगा
उस कोसी की धार को
जिसने सीना चीर बिहार का
बढ़ा दिया दुखों के राग को

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हमें मौन नहीं चाहिए
उस तूफां को शांत करने की कोशिश भी नहीं चाहिए
हमें चाहिए एक धड़कन
जो पैदा करे कोशिश
इस स्थिरता और मौन को तोड़ कर
नयी दुनिया बसाने की
दुखों को दूरकर
नयी धारा को लाने की
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जिसमें हो सपना
एक मंजिल
स्वकेंद्रित व्यक्तित्व से दूर
हमजोली और हम लोगों के अपनत्व से भरपूर
मुझे मौन नहीं
क्रांति चाहिए
बस

4 comments:

आभा said...

सही कह रहे है आप यह समय मौन रहने का नहीं है करिए अपनत्व भरी क्रान्ति ... अच्छीपोस्ट..

संगीता पुरी said...

सही कहना है आपका .. अब मौन रहने का समय नहीं .. अब क्रांति होनी चाहिए।

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

लाज़िमी सवाल है.

stranger said...

parvatpati ko aamul dolna hoga,
shankar ko nayan kholna hoga,
asi par ashok ko mund tolna hoga
gautam ko jai jaikar bolna hoga

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