Saturday, June 6, 2009

जुनून कुछ कर गुजरने का बोलता है

मेरे लिये आज की शाम ट्वेंटी-ट्वेंटी देखते गुजरा है
फटाफट क्रिकेट की दुनिया से रूबरू होते
मन चहकता है, बोलता है
जुनून कुछ कर गुजरने का बोलता है
डोलता है मन
हमेशा कुछ पाने को
जिसके बारे में हम नहीं जानते
वो क्या है, कौन सी चीज है?
ट्वेंटी-ट्वेंटी में जिस हद से गुजरने की चाहत है
क्या वह हद हम पार कर पाते हैं?

नहीं कर पाते, ये सोचकर कि अभी तो और मजा आयेगा
थोड़ा नशे का सुरूर और चढ़ेगा
लेकिन ये माया, तो बस दो घंटे के लिए होती है
ठंडी होती है और हम यूज होते हुए सिर धुनते हैं
टीम की हार या ताली पीटते हैं जीत पर

ट्रवेंटी-ट्वेंटी जैसा फास्ट हो गयी है हमारी लाइफ
क्या टेस्ट क्रिकेट जैसी शांति मिल पायेगी?
मुंगफली के साथ खाते मैच देखने के लम्हें
वापस लौट पायेंगे?
रेडियो पर कमेंटी के मजे क्या फिर मिल पायेंगे?
टीवी पर रह-रह कर लौटकर आकर देखना संभव हो पायेगा?


ये अनगिनत सवाल हैं
हमारे-आपके बीच
जो रह-रहकर उठते हैं बुंदों की तरह
लेकिन ट्वेंटी-ट्वेंटी के ज्वार में
हो जाते हैं खत्म
क्योंकि इसके नशे का क्या कहें
ये तो हमें भी डुबोये दे रहा है
आप भी डूब रहे होंगे

अब देखना ये है कि ताकत किसकी बाजू में कितनी है
रिजल्ट का इंतजार है
बस वेट कीजिये आरजू इतनी है...

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

सामयिक रचना लिखी है।बढिया।

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