मैं अब कार नहीं खरीदना चाहता। मैं उस सुविधाभोगी समुदाय का अंग नहीं बनना चाहता, जिनके अंग बुढ़ापे में न चल पाने की वजह से दर्द से टहकते रहते हैं। जब से नैनो आयी है, मेरे कार के सपने टूट गये। खस्ताहाल होती व्यवस्था के बीच, टूटती सड़कों के अपने शहर में कार होने का दर्द मैं जानता हूं।
जानता हूं कि कुछ सालों बाद कार चलाने के लिए भी जगह नहीं बचेगी। क्योंकि मेरे अलावा अन्य कई लोग सिर्फ एक कार में बैठने के लिए लाख टके को दांव पर लगा देंगे। उनकी एक ख्वाहिश पूरी होगी कार पाने की, खरीदने की और उस पर चढ़ने की। कार के साथ न जाने कितने झंझट हैं। ऊपरवाले अंकल जी ने कार ली, तो गैराज बनाया। गैराज बनवाया, तो उसकी पहरेदारी के लिए आरजू-मिन्नत करते चलते हैं। कार पर बैठकर रौब झाड़नेवाला वैसे मौसम चला गया। अब तो बस अपने दोचकिया वन-टू कर चलते रहनेवाली गाड़ी पर ही ज्यादा भरोसा है।
कार के पीछे भागती दुनिया, कार को घर में रखने का सपना देखते लोग, लग्जरी कार के लिए बोली लगाते लोग, एक लंबी फेहरिस्त है। ऐश्वर्य, सुख, भोग के लिए कार एक पहचान बन गयी है। सत्ता पक्ष के लिए लाल बत्ती लगाकर रोड पर निकलना रूआब का अंग बन गया। कार सिर्फ कार नहीं रह गयी है, ये हमारे गिरते मानस का द्योतक बन गयी है। जो यह बताती है कि मानवीय मूल्यों की तुलना में हम कितने गिर गये हैं। पैसे और जिंदगी में हम कैसे पैसे को बड़ा मानते हैं। तभी तो रईसजादों की चलती कार फुटपाथ पर सोये गरीबों को रौंद डालती है। इसलिए मैंने अपनी जिंदगी में कार नहीं रखने की कसम खा ली है। अब भले ही उसके लिए कोई कुछ कहे।
Saturday, June 13, 2009
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2 comments:
Aasha hai aap apni rai par kayam rahenge. Shubhkaamnayein.
भाई कर खरीद ही लो, ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा में कहे involve होते हैं.
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