Saturday, June 27, 2009

ये शगुन और अपशगुन का चक्कर

मेरे एक मित्र हैं दाढ़ी नहीं बनाते हैं शनिवार और मंगलवार को। एक हम हैं रोज स्मार्ट बनने के चक्कर में ब्लेड को गाल पर चला ही देते हैं। काफी लोग जाते समय पीछे से टोकवाना पसंद नहीं करते। फलाने दिन और फलाने समय में ही जाते हैं। ऐसे चक्करघन्नों के चक्कर में फंसकर सारा मजा किरकिरा हो जाता है।

कभी-कभी ऐसी मुसीबत हो जाती है कि कुछ कहना मुश्किल हो जाता है। ये शगुन और अपशगुन का चक्कर हमें तो समझ में नहीं आता है। कर्म से ज्यादा टोटके पर जोर। रिजल्ट के लिए पढ़ने से ज्यादा हनुमान जी की भक्ति पर भरोसा। इस इंडिया में क्या, बाहर में बी १३ अंक को लेकर ऐसी ही पैंतरेबाजी है। सोच-सोच कर परेशान हूं कि आखिर आदमी नाम की ये जाति कब सुधरेगी। अगर बुद्धि और विवेक पाया है कि तो उसे टोटके बनाने के गणित में ही उपयोग पर जोर रहता है।

ये कोई आज की बात नहीं है, ये तो शायद जब से आदमी ने चलना और बोलना शुरू किया, तब से ऐसा हो रहा है। हमने अब किसी भी टोटके को मानने से इनकार कर दिया है। भैया आज का यूज फुलली कर लो, तर जाओगे। कल क्या होगा, किसको पता है। पल में मौत आती है, झटक कर साथ ले जाती है। वैसे भी टोटके और शगुन-अपशगुन के चक्कर में गाड़ीवाले भी बीच रोड पर खड़े हो जाते हैं। बिल्ली बेचारी रास्ता जो काट देती है। अब इधर दूसरी गाड़ी के पार करने के इंतजार में गाड़ीवाला यूं ही घंटे-दो घंटे बैठा रहता है.

3 comments:

विवेक रस्तोगी said...

हम तो गुरुवार को भी नहीं बनाते ।

Gyan Dutt Pandey said...

कसम हनुमान जी की। हम इन शगुनापशगुन पर यकीन नहीं करते। :)

विवेक सिंह said...

आप तो बड़े सयाने हैं :)

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