बेलाग लेखन के इस दौर में जब गंभीर साहित्य पढ़ने के लिए समय नहीं है, तो ब्लागरों को कुछ लोग साहित्यकार, पत्रकार के साथ काफी कुछ बनाने में लगे हैं। एक खास कल्चर के साथ इसकी ताकत को सामूहिक रूप को अमलीजामा पहनाने की कोशिश हो रही है। जब कोई चीज कैटगराइज करके बतायी या पढ़ायी जाती है, तो ये एक पहचान दिलाने का काम करती है। वैसे में ब्लाग जगत में भी कुछ ऐसी ही कोशिश होती है। बहस ये होती है है कि क्या यहां भी कोई बड़ा साहित्यकार पैदा नहीं हो सकता। या कोई ऐसा स्तरीय लेखक नहीं बन सकता है, जिस पर पूरा ब्लागिंग कम्युनिटी गर्व कर सके। लेकिन भैया जब कीबोर्ड पर बिना विचारे उगलने की आदत हो और ब्लाग जैसा सस्ता और मुफ्त का माध्यम हो, तो कैसे खासकर हिन्दी में ऐसी उम्मीद की जा सकती है। हिन्दी ब्लाग जगत में मठाधीश बनकर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर आप किसी को पूरी तरह गरियाते हुए जहर उगल डालिए, यही परंपरा विकसित हुई है। सृजनात्मकता के नाम पर १५-२० ब्लाग हैं, नहीं तो बाकी के सिर्फ हवाबाजी भर के ही हैं। इसमें मैं खुद को भी पाता हूं। क्योंकि शौकिया ब्लागिंग की शुरुआत होती है। यहां आप वे सब चीजें लिख और कह सकते हैं, जो आपके मन में हैं। व्यक्तित्व का आईना कह लिजिए। वैसे में किसी गंभीर साहित्य के लिए फटाफट संस्कृति में कहां जगह बचती है। ब्लाग पर औसत तौर पर किसी चीज को लिखने से पहले अधिकांश व्यक्ति कितना चिंतन-मनन करते होंगे, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। ब्लाग जगत सूचना का भंडार हो सकता है। लेकिन इसके जरिये जो महान साहित्यकार पैदा करने की परिकल्पना को प्रायोजित किया जा रहा है, वह सिर्फ मृगतृष्णाभर है।
अर्ज है
आईने में अपनी शक्ल देख, आप क्यों घबराते है?
सच्चाई से डर कर, क्यों छिपते-छिपाते हैं?
अब इस देश में न कोई गांधी, विवेकानंद और न कोई प्रेमचंद होगा
सब फटाफट होगा, तो क्यों कोई टेंशन लेने को रजामंद होगा
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Friday, July 3, 2009
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3 comments:
मठाधीशों के बारे में तो कह नहीं सकता. लेकिन मुझे जहां कहीं भी अच्छा लिखा हुआ मिलता है मैं अवश्य पढ़ने की कोशिश करता हूं. लेकिन यह तो सत्य है कि ब्लाग ने काफी अच्छे लेखक भी दिये हैं और उन्हें तमाम दुनिया तक पहुंचाया भी है.
लिखे जाइये। वह क्या है, उसे भविष्य तय करेगा।
दरअसल अपने नाम के आगे इस तरह के टैग लगवाए बिना लोगों का खाना नहीं पचता। ब्लागिंग अपने आप में एक अलग तरह की विधा है। इसके अपने तत्त्व हैं। लोगों हमें एक सफल ब्लॉगर के रूप में जाने यही बहुत है।
वैसे ये भी कहना चाहूँगा कि जिन लोगों में साहित्यिक प्रतिभा है वो अपना हुनर ब्लागिंग के ज़रिए आजमाए तो उसमें बुरा कुछ नहीं। अच्छा लेखन ब्लाग पर भी हो सकता है और पत्र पत्रिकाओं में भी। ब्लागिंग में मुख्य कमी मुझे अच्छी समीक्षात्मक टिप्पणी की कमी में दिखती हे जिससे नए लेखकों को कई बार अपनि कमियों का अहसास नहीं हो पाता.
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