Wednesday, July 22, 2009

डगमगाता इलेक्ट्रानिक मीडिया और तमाशा बनी भारतीय संस्कृति

मीडिया खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया में ग्रहण को लेकर बढ़ गये अंधविश्वास को लेकर जंग छेड़ने का दावा किया जाता रहा। लगता ऐसा था कि ये तथाकथित मीडिया के लोग भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े रक्षक हैं। जंग ऐसा शब्द है, जिसके बाद कोई अर्थ या विषय बहस के लिए नहीं रह जाता है।

मीडिया के बारे में सोचनेवाले लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जहां इस देश की संस्कृति को चुनौती देने के लिए रोज कोई न कोई बेतुका रास्ता अख्तियार कर लिया जा रहा है, वहीं अब निजी जिंदगी को भी व्यावसायिक पैमाने पर अपनाया जा रहा है। यह सच है कि फरजी लोगों ने साधु संतों के नाम पर गोरखधंधा भी फैलाया, लेकिन इसके साथ ये भी सच है कि आज का मीडिया उनके नाम पर पूरी भारतीय संस्कृति को ललकारने के मूड में है।

  • भारतीय संस्कृति प्रणाम और नमस्कार से शुरू होती है। अभिवादन की कला के साथ आगे बढ़ती है। अंगरेजियत के पैरोकार सीधे तौर पर भारतीय संस्कृति को पुरातन पंथी और अंगरेजियत को आधुनिकता का चोला पहनाने की कोशिश में जुटे रह रहे हैं। इसमें एक सीमा तक उन्हें सफलता भी मिली। ऐसी ही जंग कुछ इलेक्ट्रानिक मीडिया में देखने को मिली।

सबसे बड़ी चीज ये है कि या तो भारतीय संस्कृति को लेकर इतना बड़ा अध्यात्म का बाजार तैयार किया जाता है कि मन बार-बार गंगा स्नान करने की चाह में कुहक उठता है।
वहीं टीआरपी की रेस में कभी-कभी यही चैनल उलट रूप अख्तियार कर पूरा क्रांतिकारी स्वरूप धारण कर लेते हैं।

पूरे मीडिया जगत को देखकर ये खास तौर पर लगता है कि ये टीआरपी की रेस से प्रभावित है। आखिर किसी चीज का विरोध सहज आकर्षण उत्पन्न करता है। जानकारी जुटाना और जानकारी रखना दोनों ही अलग चीजें हैं।


विडंबना ये है कि हिन्दू धर्म के मानकों का जिस प्रकार से अंधविश्वास मानते हुए विरोध किया जाता रहा है, उसने पूरी संस्कृति को खासा नुकसान पहुंचाया है। व्यक्तिगत जीवन तक में लोग अपनी भाषा को तुच्छ नजरों से देखने लगे हैं। इन्हीं विरोधाभासों के बीच जब पोंगा पंडितों के खिलाफ जंग छेड़ने का दावा किया जाता है, तो हंसी आती है। क्योंकि हर चैनल अपनी आइडिया या एक सीध में कही जानेवाली बातों को ही सही करार देता है।

होना ये चाहिए कि पूरी बात को बिना मसाला लगाये प्रस्तुत किया जाये। इसके लिए थोड़ा परिश्रम की आवश्यकता पड़ेगी, जिसे स्पेड वर्क कहते हैं। यानी किसी काम को करने से पहले उसके पूरे बैकग्राऊंड के बारे में जानकारी हासिल करना। यहां ये किया नहीं जाता और पूरी पत्रकारिता के कांसेप्ट का बंटाधार करते हुए सीधे देश की संस्कृति को चुनौती दे दी जाती है।

सिस्टम को तोड़ने की मुहिम को ज्यादा प्रचार-प्रसार करता इलेक्ट्रानिक मीडिया जिस गलत सोच के बीच जी रहा है, उसके इसे अहसास नहीं है। बात भी सही है कि बाजार की इस गलाकाट स्पर्द्धा में इलेक्ट्रानिक मीडिया करे भी तो क्या करे? उनके पास और कोई सबजेक्ट नहीं होता। कोई गहरी पैठ कराती जानकारी नहीं होती।

सबसे आसान चीजें हैं -

स्थापित चीजों को तोड़ दो
कायम सिस्टम को चैलेंज करो।
परिवार की अवधारणा को तोड़नेवाली बातों को महत्व दो।
सनसनी और अपराध, जो दिमागी नसों को झंझोरती हों, उन्हें अपने मसाले में डालो
आधी अधूरी जानकारी के साथ बातों को आगे बढ़ाओ


हर २४ घंटे में पूरी विषयवस्तु को बदलनेवाले चैनलों के पास बातों का गहन अध्ययन करने के लिए भी शायद समय नहीं है। इसलिए बैलेंसिंग एक्ट के सहारे हर कोई खुद को बाजार में स्थापित करने के लिए जुटा हुआ है मीडिया के चिंतक भी इस झूलेवाली स्थिति में खुद को हंसी का पात्र बनने से नहीं रोक पा रहे हैं। मुश्किलों से जूझती पूरी मीडिया बिरादरी के सामने एक अहम सवाल खबरों और संस्कृति की धारा के बीच सही संतुलन पाटने की है। अब तो खैर अगले पूर्ण ग्रहण तक के लिए इंतजार करना पड़ेगा।

शायद.. ये लेख बहस को आगे बढ़ाये।

2 comments:

कुन्नू सिंह said...

http://www.dewlance.com
Dewlance Best Web Hosting
1 GB Web Space
Unlimited Bandwidth,email,ftp,domain parking...etc.

$2.92/year (Rs.146/year) Web Space 1 GB
$9.98/year (Rs.499/year) Web Space 5 GB
$15.99/year(Rs.799/year) Web Space 10 GB

.uk Domain $5 (Rs.250)

Reseller Hosting

Unlimited Bandwidth,email,ftp,domain parking on all plans

1. Disk Space 10 GB $7/m & $49/year (Rs.350/m & Rs.2450/year)

2. 30 GB Disk Space $16/m & $150/year (Rs.799/m & Rs.7500/Year)

3. Unlimited Disk Space $19.98/m & $199/year(Rs.999/m & Rs.9950/year)

Free Domain or All reseller hosting annaual Purchase
Free Domain Reseller on all reseller pack
Free Domain privacy
Free Tech. support


http://www.dewlance.com

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

यही टीवी वाले काली नजर रक्षा यन्त्र बेचकर पैसा कमाते हैं. यही भारतीय संस्कृति को गालियां देते हैं. इनका बस चले तो लाइव सुहागरात भी दिखा दें.

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive