पटना में जो कुछ हुआ, वह बिहार के लिए शर्मनाक था। लेकिन इस सबसे ज्यादा जो आपके-हमारे मन को हिलाती है, वह किसी भी व्यक्ति के द्वारा मौके पर उस वक्त विरोध नहीं किया जाना था।
यह क्या दर्शाता है -
यह क्या दर्शाता है -
- क्या बिहार के लोग संवेदनहीन हो गये हैं?
- या बिहार वैसा ही है, जैसा पहले था?
एक बहस फिर शुरू हो चुकी है। बिहार में हाल में हो रही दो-तीन घटनाएं ऐसी हैं, जहां लोग कानून की धज्जियां उड़ाते मालूम पड़ते हैं। एक गंभीर मसला है, जो सामाजिक चिंतकों को भी प्रभावित कर रही है। राजनीतिक भी सवाल कर रहे हैं कि कानून और पुलिस तो अपना काम करेगी, लेकिन समाज के लोग ऐसे हो जायेंगे, तो कैसे चलेगा?
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