राखी सावंत के स्वयंवर का आखिर चरण पूरा होने को था और लोग उत्सुकता से देखना चाह रहे थे कि वह किसे अपना हाथ थामने का अवसर देती है। राखी सावंत आज की तारीख में मीडिया पर रिसर्च करनेवालों के लिए महत्वपूर्ण है।
इसलिए कि जो उसकी आलोचना करते हैं, वे भी देखना पसंद करते हैं और जो नही पसंद करते, वह भी। आलोचना, प्रशंसा और उदासीनता के तीनों आयामों के बीच राखी सावंत को मीडिया ने एक ऐसा व्यक्तित्व प्रदान किया है, जिसके दमपर कोइ चैनल अपनी रेटिंग बढ़ा सकता है।
उदाहरण के लिए अगर कहीं शांतिपूर्वक आराम से काम चल रहा है और कोई ध्यान नहीं दिया जाता रहा हो, तो एक हंगामेदार पब्लिसिटी की जरूरत होती है। ठीक उसी तरह राखी सावंत के मामले में टीवी चैनल राखी सावंत के नाम और उसके व्यक्तित्व को लेकर इतने संजीदा रहते हैं कि एक पूरा स्वयंवर का कार्यक्रम रच डाला गया.
मीडिया के तमाम आलोचकों के लिए ये भी एक मसाला से कम नहीं है। जब पूरे देश में सूखे पर चर्चा हो रही है और लोग महंगाई से त्रस्त हों, तो उसके बीच में राखी सावंत जैसे पब्लिसिटी वाले कार्यक्रमों से दर्शकों में जान फूंकने की कोशिश थोड़ा बदलाव की बयार ला ही देती है।
शोले के गब्बर को लोग आज तक नहीं भूले। गब्बर सिंह के डायलॉग बच्चे-बच्चे की जुबां पर कैद है। हर दस कोस पर हर बच्चा आज भी मां के आंचल से लिपट कर जब भी रोता है, तो मां बोलती है, सो जा बेटे, नहीं तो गब्बर सिंह आ जायेगा। वैसे ही टीवी चैनलों के लिए एक मामला ये भी है कि टीआरपी मत गिराओ, नहीं तो राखी सावंत की मदद लेनी होगी।
शुरू से लेकर आज तक कैसे राखी सावंत और मीडिया एक-दूसरे के करीब आते गये, इसे देखना भी अपने आप में दिलचस्प है। न्यूज चैनलों में तो बजाप्ता ब्रेकिंग न्यूज आती थी कि राखी सावंत जुटी समाज सेवा में, फलां, फलां घटना घटी। विवादों का ऐसा चक्रव्यूह रच डाला जाता था कि दर्शक रिमोट थामें पूरी कहानी जानने की कोशिश करता रहता था। इसे पूरे मामले को अफीम का एक ऐसा नशा कह सकते हैं, जिससे बाहर निकलने के बाद सिवाय समय की बर्बादी के हाथ कुछ नहीं लगता। राखी सावंत के गुस्से से लेकर उनके बयानों तक के चर्चे आम हैं। अभी तो राखी सावंत ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है। अब देखना ये है कि आगे शादी के मौके पर मीडिया का रिस्पांस कैसा होता है।
(वैसे ब्लाग जगत में एक अलबेला विवाद छाया हुआ है, उसे लेकर क्या कहा जाये। हम तो यही कह सकते हैं कि भाई साहब, ये आप क्या कर रहे हो?)
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4 comments:
राखी वाला शो तो देखता नही पर अलबेला विवाद दुखी कर रहा है। विवाद खतम ही नही होता कि अलबेला जी नया बखेडा कर देते है। गम्भीरता दिखाने की जरुरत है। इस ब्लाग के माध्यम से हम उनसे अनुरोध करते है कि हिन्दी ब्लागरो को पहले जाने फिर उनका मजाक उडाये। सुबह से शाम तक ब्लागवाणी अलबेला वाणी बन गयी है। बहुत दुखी हूँ। उन्हे समझदारी दिखाकर केवल अपने लेखन मे ऊर्जा लगानी चाहिये।
ye trp ka chatravyooh hai
(वैसे ब्लाग जगत में एक अलबेला विवाद छाया हुआ है, उसे लेकर क्या कहा जाये। हम तो यही कह सकते हैं कि भाई साहब, ये आप क्या कर रहे हो?)
अब कुछ कहने को बाकी है क्या?
जय हो अलबेलों की.
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