कभी-कभी कुछ करने को जी नहीं चाहता। अंगरेजी में एक शब्द है बर्न आउट, जिस अवस्था में रुचि घट जाती है और आदमी हरारत के चरम पर महसूस करता है। आज की भाग-दौड़वाली जिंदगी में इस अवस्था को पानेवाले लोगों की संख्या शायद बढ़ रही है। जिदगी में खास नजरिये को जानने की जद्दोजहद लगी रहती है।
पहले के संयुक्त परिवारों में लोग एक-दूसरे का सहारा बनते थे। हमें तो अब भी बचपन के दिनों में गांवों में लोगों का जुटना याद आता था। कुछ लोग जो पहले एक्टिव थे, उन्हें इनएक्टिव या कहें अरुचि के दौर से गुजरते देखता हूं। ये हमें ये सोचने को बाध्य करता है कि एक ही आदमी की दो जिंदगी कैसे हो सकती है। कल तक ऊर्जा से सराबोर रहनेवाला व्यक्ति आज ऊर्जाविहीन क्यों है?
ज्यादा रिसर्च नहीं करें, तो इतना तो जगजाहिर है कि काम के साथ आराम भी जरूरी है। एक निश्चित अविध के लिए मस्ती भी। ये जरूरी है कि हम कुछ समय अपने लिये निकालें और उसका इस्तेमाल खुद को रिचार्ज करने के लिए करें। मोबाइल की बैटरी की तरह खुद को कुछ देर के लिए ऊर्जा से भरने के लिए लगायें। हमारी तनाव भरी जिंदगी के लिए तो ये और भी जरूरी है।
वैसे हमारे विचार से खुशियों को खरीदा या लाया नहीं जा सकता है। खुशियों को तो बटोरना होता है, कुछ इधर से, कुछ उधर से। .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
Pooree tarah sahee kahaa aapne.
{ Treasurer-T & S }
आगे आने वाला समय तो इससे भी ज्यादा गया-बीता होगा।
बिल्कुल सही !!
पते की बात
samay to nikalna hi hoga....
सुन्दर आलेख.
बिलकुल ठीक लिखा है.
Post a Comment