Friday, August 14, 2009

बगुले के झुंड में घुसकर कौआ बगुला नहीं हो जाता है।

ब्लाग जगत में उधेड़बुन है। आलम ये है कि हमारी ब्लाग चोरी हो गयी, शीर्षक के पोस्ट को पढ़नेवालों की तादाद सबसे ज्यादा रही। टीआरपी के लिए भयंकर मसाला लग गया है। ब्लाग जगत में लिक्खाड़ों की विश्वसनीयता पर उंगली उठायी जा रही है। ये भी सच है कि शार्टकट तरीके से टीआरपी बढ़ाने का चलन बढ़ चला है। कहीं किसी की बढ़िया पोस्ट उठाकर चिपका देनेवालों की कमी नहीं। लेकिन हम कहते हैं कि भैया, एक-दो क्यों आप पूरी की पूरी पोस्ट ही पेस्ट कर दीजिए। वैसे भी ब्लाग स्पॉट जब मुफ्त में ये सेवा दे रहा हो, तो मेहनत क्यों करें। यही कारण है कि हिन्दी ब्लाग पर संतुलित, बेहतर लिक्खाड़ बमुश्किल मिलते हैं। क्योंकि जब बात अंदर से निकल कर आयेगी, तभी दूर तलक जायेगी। यहां अंदर से क्या, बाहर से भी कुछ नहीं निकलता है। हां, किसी ब्लागर के विरोध में, उसकी विश्वसनीयता पर उंगली उठाने की बातें करिये, लाइन लग जायेगी। एक से एक उत्तम विचार मिलेंगे और दिल बाग-बाग हो जायेगा। भाई साहब बहस करिये, मुद्दों को उठाइये और मन में झंझावात पैदा करनेवाले करंट का अहसास दिलाइये। ये कट-पेस्ट का मसला लेकर करने से क्या कुछ होनेवाला है? दूसरी बात, चोरी करनेवाले और लिखनेवाले दोनों ही अपनी जगह अड़े दिखते हैं। पिछले दिनों एक ब्लाग से सिर्फ इसलिए कट-पेस्ट कर लिया गया कि उन्होंने कॉपीराइट के दावे को नहीं माननेवाली बात कही थी और रचना पर पाठक के अधिकार का मामला उठाया था। चोरी ऊपर से सीनाजोरी करके किसी भी संवाद माध्यम का विस्तार नहीं किया जा सकता है, अपने ब्लाग का भी नहीं। क्योंकि आपको, आपकी भाषा को, पाठक और लोग जानते हैं। बगुले के झुंड में घुसकर कौआ बगुला नहीं हो जाता है।

3 comments:

विनीत कुमार said...

हिन्दी ब्लाग पर संतुलित, बेहतर लिक्खाड़ बमुश्किल मिलते हैं।....उसके बाद लिखा-
बगुले के झुंड में घुसकर कौआ बगुला नहीं हो जाता है।
दोनों बात आप ही कर रहे हैं जब अच्छा लिख ही नहीं रहे हैं लोग तो बगुला कैसे हो गए औऱ जब बगुला हैं तो अच्छा कैसे नहीं लिख रहे हैं.परस्पर विरोधाभासी बातें कह रहे हैं आप।
वैसे अपना तो यही मानना है कि जो मन हो वो करिए,मन करे लिखिए,मन करे चेपिए औऱ इन दोनों का मन न करे तो प्रभातजी जैसा उपदेश दीजिए।

अविनाश वाचस्पति said...

प्रभात नहीं आने वाला गोपाल जी
बाज आना हमारी फितरत नहीं है।

Jayram Viplav said...

हिन्दी ब्लाग पर संतुलित, बेहतर लिक्खाड़ बमुश्किल मिलते हैं।.." aapki baat se sahmat hoon . trp ka funda yahan khub jamta hai . aur aise do teen prayog hamne bhi kiye hain . kisi blogger se jude mudde par likhen to tippni ki badh aa jati lekin bahas layak mudde adad tippni ki bat johte thende pad jaate hain .

blog jagat mein samwedanshil logon ka ghor abhaw hai .

wibhinn wichardharon ke bich samwaad ke lale pade hain kyonki hame wirodhiyo ko sunne ki aadat nahi hai .

waise ham bhi iske khilaf muhim chala rhe hain .

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

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