
फेसबुक पर एक व्यक्ति ने इसी तरह के स्टेटस पर एक सवाल उठाया था।
उसका कहना था कि शाहरुख माय नेम इज खान टाइटिलवाली फिल्म पर काम कर रहे हैं और ये देखिये खान टाइटिल लेकर हंगामा हो गया। १५ अगस्त के ठीक पहले, देशभक्ति का ज्वार और अमेरिकी दादागिरी तीनों मिलाकर प्रचार का मौका ठीक दिख रहा था।
(वैसे इस मामले में मैं अमेरिकी कार्रवाई की निंदा करता हूं और रहूंगा)।
ऐसे में फिल्मों के गॉशिप को लेकर एंगल नजर आ रहा है। कमीने फिल्म आने को है और शाहिद-प्रियंका के किस्से मशहूर हो जाते हैं। उनकी मित्रता के बारे में अखबारों में लिखा जाता है। कुछ ऐसी ही बातें न जानें कितनी चल निकलती हैं।
मामला ये है कि दर्शकों की सोच को सिनेमा की ओर मोड़ने का जो नायाब गणित खेला जाता है, उसमें मीडिया भी फंस जाता है। उसे खबर देनी होती है। इसलिए शायद ऐसी बात होती है या करायी जाती है, जिससे पूरा फायदा उधर यानी फिल्म की ओर चला जाता है। मीडिया पीआर एजेंसी के तौर पर इस्तेमाल हो जाती है।
बिजनेस करने या फिल्मों को चलाने के लिए ये हथकंडा पुराना नहीं है। सच का सामना करनेवाले से ऐसे निजी सवाल पूछे जाने लगे थे कि दर्शक बेचैन हो जायें देखने के लिए। ये जगजाहिर है कि आदमी की नेगेटिविटी आकर्षित करती है। इसी नेगेटिविटी को भुनाने के खेल में लोग फंस जाते हैं।
2 comments:
कहीं तो कुछ है
इसमें गलत क्या है?शाहरुख होंगे अपने देश के फिल्म स्टार लेकिन उससे अमेरिका की अपनी सुरक्षा ओ सुनिश्चित नहीं हो जाती ! वह हम हिन्दुस्तानियों की तरह वेशर्म नहीं है की अआतान्क्वादियो के वार पर वार झेलते रहे और हमारे नेता कहे की ऐसी छिटपुट घटनाएं तो होती रहती है ! २००१ के बाद कोई माई का लाल उस देश पर दुबारा हमला नहीं कर सका, उसका एक कारण यह भी है !
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