हमारी बातों से घबराये कुछ सज्जनों ने मेरे प्रोफेशन पर कमेंट करते हुए हमसे अपने परिचय से खुद के कलम के सिपाही होने के दावे को हटाने का आह्वान किया।
हमें कोई आपत्ति नहीं है और न ही किसी पर अपनी धौंस दिखाने की कोशिश है। हमारी ये जंग तो उन तमाम हिन्दी की चालू या आम भाषा में बात करनेवाले ब्लागरों के लिए है, जिन्होंने साहित्य का क, ख, ग भी नहीं पढ़ा है।
यहां पर आदमी कम से कम अपनी निजता को तोड़कर कुछ कहने का प्रयास तो करता ही है। साथ ही जो समय और मेहनत वह लिखने में लगाता है, उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। हम विद्वता की आड़ में अपने अहं की तुष्टि के लिए चाहे जो न करें, सब माफ।
जब संवाद माध्यमों में सरल, सहज शब्दों के इस्तेमाल करने पर जोर दिया जा रहा हो, तो हम ब्लाग जगत को साहित्य औरबौद्धिक विचारों के जंग का अखाड़ा बना दें, क्या अब यही भर बचा है? हमारा काम शब्दों से खेलना है, ये हम जानते हैं। लेकिन जब हिन्दी भाषा को इन्हीं उपदेशात्मक बातों के कारण जंग लगते देखता हूं, तो मन सौ बार मरता है। अंगरेजों ने कभी भी भाषा को लेकर इतना विवाद न क्या हो, जितना हम करते हैं। बौद्धिक श्रेष्ठता की ये जंग कहां ले जायेगी, इसकी कल्पना करने से ही मन कांप जाता है।
हमने अपना परिचय उन तमाम आपत्तियों के बाद बदल दिया है। हमारा मकसद किसी भी प्रकार से किसी पर रुतबा दिखाना या किसी के सहारे परिचय देना नहीं है। ब्लाग निजी प्रयास है और उसे आगे भी निजी प्रयास के तहत ही रखेंगे।
अब से हमारा परिचय निम्न रहेगा-
मैं खुद अपनी ही तलाश में जुटा हूं। उन हजारों ब्लागरों की जमात में रहकर विचारों के प्रवाह को सही दिशा देना चाहता हूं, जो जाने-अनजाने ब्लाग की दुनिया में आने की गलती कर चुके हैं। बस अब खुद को बदलने का प्रयास है। अब मैं खुद को उन आम ब्लागरों का हिस्सा मानता हूं, जिन्होंने हिन्दी में बात करने, लिखने और इसे आत्मसात करने की चेष्टा की है। आप दक्षिण भारतीय हैं या उत्तर भारत, इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। आप मेरे साथ दोस्त और सहभागी बनकर हिन्दी को आम आदमी की भाषा बनाने में सहयोग करें। खुद को तलाशने का अभियान जारी है।
ये शब्द ही हमारे परिचय होंगे। हम तो तकनीकी, साइंस और दूसरी भाषा के तमाम उन हिन्दी प्रेमियों के लिए आवाज उठा रहे हैं, जो सिर्फ हिन्दी भाषा के प्रति प्रेमवश आगे हाथ बढ़ा रहे होंगे। ऐसा न हो कि ये कुछ लोगों का ये साझा (कु) प्रयास आपकी इस अनोखी उभरती दुनिया का आभामंडल ही खत्म कर दे।
Saturday, August 29, 2009
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7 comments:
शाबास पप्पू!
स्वागत है !
नए परिचय की बधाई!
अहम पर चोट वास्तव में ही तिलमिला देने वाली होती है !
@”हम तो तकनीकी, साइंस और दूसरी भाषा के तमाम उन हिन्दी प्रेमियों के लिए आवाज उठा रहे हैं, जो सिर्फ हिन्दी भाषा के प्रति प्रेमवश आगे हाथ बढ़ा रहे होंगे। ऐसा न हो कि ये कुछ लोगों का ये साझा (कु) प्रयास आपकी इस अनोखी उभरती दुनिया का आभामंडल ही खत्म कर दे।”
जो हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम करेगा वह इसका रूप लावण्य बिगाड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकता। आपने जो निर्णय लिया उसके लिए साधुवाद।
हाँ, जो कुछ भी हुआ उसे ‘कुप्रयास’ न कहें। विचारों का मुक्त आदान प्रदान होगा तो कुछ अप्रिय बातें भी सुननी पड़ सकती हैं। सबको इसके लिए तैयार रहना चाहिए।
कु-प्रयास नहीं था, वह कुछ-प्रयास था।
जो भी था, साझा तो कतई ना था। सबके अपने व्यक्तिगत विचार थे।
स्वागत है आपके नए विचारों का
स्वागत है.. नये विचारों के लिये
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