जसवंत साहब पाकिस्तान जा रहे हैं। पुस्तक के प्रचार के लिए। वहां जायेंगे, तो नाम होगा, काम होगा और साथ में इंटरनेशनल लेवल पर चर्चा के भागीदार होंगे। इन सबके बीच एक बहस ये भी होती है कि जिस प्रकार यहां भारत में जसवंत सिहं जिन्ना पर किताब लिख डालते हैं। बहसों का दौर शुरू हो जाता है। लोग बिना लाग लपेट पाकिस्तान-हिन्दुस्तान किये इतिहास को खंगालने की कोशिश करते हैं, वैसा क्या पाकिस्तान में संभव है?
इस विचार को सामने रखते हुए मोहम्मद हनीफ साहब ने बीबीसी की साइट पर ब्लाग में सवाल उठाये हैं।
हमारे हिसाब से ये हमारे देश में ही संभव है कि कोई हर मुद्दे पर गहराई से बात कर सकता है। आप चाहे जिस वर्ग से आते हों, आप हर तरह की अभिव्यक्ति के लिए आजाद हैं। जसवंत जब पाकिस्तान जायेंगे, तो वहां के बाशिंदे भी उनसे हर पहलू पर बात करना चाहेंगे। अब बहस इसे लेकर छिड़ी है कि गलती किसने की है। गांधी जी ने या जिन्ना ने। बहस तो ये होनी चाहिए कि राजनीतिक दल और इस देश के विचारक इतिहास को भी अपने हिसाब से तोड़मरोड़ कर रख देते हैं। जिस गांधी जी को कांग्रेस ने महान बताया और बनाया, उसे आरएसएस देश तोड़क बता रही है। साथ ही भाजपा जिन्ना-गांधी के मुद्दे पर खुद को लहूलुहान करने के लिए भिड़ी है।
इंडियन डेमोक्रेसी का इससे ताजातरीन उदाहरण और क्या हो सकता है कि कसाब इतने लोगों का खून बहाने के बाद भी कानून के सहारे आज भी अपने जीवन का जंग लड़ रहा है। खुलापन और खुला नजरिया, इस देश को कहां ले जायेगा, ये पता नहीं चलता। जहां पाकिस्तान में इतनी संकीर्णता है कि अभिव्यक्ति को दबाने की हर कोशिश है, वहीं यहां अभिव्यक्ति के नाम पर लाल झंडा गाड़नेवालों के तांडव से अनुशासनहीनता और विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो जा रही है। लोग ये नहीं समझ पा रहे हैं कि कौन गलत है और कौन सही है।
भारत के लोग वैचारिक लड़ाई लड़ रहे हैं खुद से। कहीं अंदर से जवाब पाने की कोशिश जारी है। ये परिपक्व होते जा रहे समाज की निशानी है या खुद में सिमट कर अपनी दुनिया में ही बहस करने की लहर। समय ही बतायेगा।
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1 comment:
Jaswant singh puri tarah se galat nahi hai. Pakistan bhi utna bura nahi hai, jitna ham samajhte hai....
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