Thursday, August 27, 2009
मुशर्ऱफ साहब जो बीज बो के गये, उसकी फसल काटकर हम क्यों खायें?
एक चैनल पर बताया गया कि पाकिस्तान में बुद्धिजीवी खरी-खरी सुना रहे हैं। लोगों से बदलाव की मुहिम चलाने की अपील की जा रही है। बताया जा रहा है कि कम्युनिटी ने ऐसा कौन सा गुनाह कर लिया है कि वे दुनिया की नजरों में अपराधी करार दिये जा रहे हैं। हौसलों की बात करते हुए सोचिये, तो ये एक वाजिब पहल है। फेसबुक पर भी हमने इसी बात को लेकर स्टेटस में लिखा। ज्यादातर लोग पाकिस्तान की नस के नहीं बदलने की बात करते हैं। करते तो हम भीहैं। लेकिन जब वहां के बाशिंदे खुद बहस चलायें कि हमें बदलना है, तो क्या इसका समर्थन न करें। बदलाव की बातें करना गुनाह क्यों हो जाता है? हम पाकिस्तान से क्या इसी तरह लड़ने की बातें करते रहें। कहीं न कहीं से शुरुआत तो करनी ही होगी। एक खत्म नहीं होनेवाली जंग के सिपहसलार बनकर हम आखिर क्या हासिल कर लेंगे। ऊपरवाला भी हमारी पीढ़ी को कभी माफ नहीं करेगा। मुशर्ऱफ साहब जो बीज बो के गये, उसकी फसल काटकर हम क्यों खायें? हम नयी फसल उगाकर नये सिरे से माहौल क्यों न तैयार करें। हर मुल्क तरक्की करना चाहता है। जियो टीवी के एनिमेशन फिल्म को देखिये। इंसान के बदलने की बातें की गयी हैं। हिंसा को समाप्त करने की गुहार लगायी गयी है। विचारों के बदलने से ही समाज भी बदलेगा। सिर्फ कट्टर चश्मे से मुल्क की तकदीर को बदलने की कोशिश क्यों हो? शायद ये बहुत से लोगों को नागवार गुजरे, लेकिन क्या करें, अगर बेहतर बदलाव है, तो उसका समर्थन तो करना ही होगा।
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