क्या स्टाइल है... बड़ा स्टाइल मारकर चल रहे हो.. उसकी स्टाइल ऐसी है...
स्टाइल, जैसे एक शब्द के पीछे पूरा जुनून चलता है। लोग उस स्टाइल के दीवाने रहते हैं। बचपन से ये माथा भिन्नाते रहता था कि आखिर ये स्टाइल क्या बला है? ये स्टाइल, ऐसा क्या है, जो दूसरों से अलग कर देता है। चीजों को देखने के लिए अलग दृष्टिकोण देनेवाला ये स्टाइल सचमुच में खास होता है।
हमें तो आज तक साधना कट स्टाइल वाला शब्द दिमाग में चकरघिन्नी की तरह घूमता रहता है। सुना था कि साधना, जो सुपरहिट हीरोइन थीं, उनकी केश सज्जा की दीवानगी इस कदर थी कि उस स्टाइल को साधना कट नाम दे दिया गया।
कपिल दा का अपना स्टाइल चला। कपिल दा जवाब नहीं दमदार आवाज में डायलॉग रह-रहकर गूंजता रहता है।
८० के दौर में छाती पर शर्ट के बटनों को खोलकर चलने का स्टाइल चल पड़ा था। सड़कछाप मजनू या चवन्नी हीरो खुद को वैसाकर फिल्मी हीरो के समकक्ष समझते थे। मर्द होने का अहसास शायद बटन खोलकर चलने से ही होता था।
अब आज कल स्टाइल को लेकर इतना कन्फ्यूजन कायम है कि कोई खास स्टाइल चल ही नहीं पाता। इसे क्या कहें, ज्यादा विकल्प का मौजूद होना या किसी चीज के ज्यादा समय तक कायम करने की क्षमता का घट जाना। ये सच है कि पहले के दौर में तथाकथित स्टाइल लोगों को प्रेरित करते थे कुछ करने के लिए। आजकल साबुन के बुलबुले की माफिक सबकुछ खत्म हो जाता है। स्टाइल की परंपरा ढह गयी है।
हालत ये है कि अभी तक उसी गब्बर स्टाइल की नकल करते लोग नजर आते हैं। वही बसंती, बीरू के डायलॉग जुबां पर कायम हैं। ऐसा क्यों है कि आज कोई किसी हीरोइन या हीरो के स्टाइल की नकल नहीं करता? या किसी की स्टाइल ज्यादा दिनों तक सस्टेन नहीं करती। बड़ा पेचीदा मामला है, लेकिन है दिलचस्प।
अपुन का स्टाइल तो मनमाफिक पोस्ट लिख देने का है। चलता है ना...
स्टाइल का मर जाना, पीढ़ी में कायम क्रिएटिविटी का मर जाना भी है। संवेदन शून्य हो जाने की कहानी है। कोई काम, कोई जज्बात, कोई व्यक्ति किसी को प्रभावित नहीं करते। टीवी पर २४ घंटे चलते लाइव शो से पैदा हो रही ऊब बदलाव की चाहत को मार दे रही है। मशीनी जिंदगी में स्टाइल का कोई महत्व नहीं है।
हम तो कहेंगे, स्टाइल को मरने मत दीजिए। कुछ यूं चलिये, यूं कहिये कि लोग कहें, देख उसके स्टाइल की नकल कर रहा है।
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9 comments:
सुन्दर आलेख । आभार ।
स्टाइल मेक्स यू...:) बढ़िया आलेख.
आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.
स्टाइल का मर जाना, पीढ़ी में कायम क्रिएटिविटी का मर जाना भी है। संवेदन शून्य हो जाने की कहानी है। कोई काम, कोई जज्बात, कोई व्यक्ति किसी को प्रभावित नहीं करते। टीवी पर २४ घंटे चलते लाइव शो से पैदा हो रही ऊब बदलाव की चाहत को मार दे रही है। मशीनी जिंदगी में स्टाइल का कोई महत्व नहीं है।thik hai.nice
सही है हमने भी बहुत स्टाईल मारा है, और आज भी मार रहे हैं सबका अपना अपना स्टाईल होता है, और हमारे दोस्तों में तो हम ऐसे भी श्टाईल भाई से फ़ेमस होते हैं। स्टाईल ही तो सबसे अलग बनाता है। :) अच्छा विषय।
वाह! रे गोपाला, थन्नै तो म्हारी ज्वानी को स्टाईल फोटू समेत दरसा दि्यो। काँई मरै छा लोग ईं स्टाईल पै? बरणन भी नीं कर सकूँ। बौथ बढ़िया पोस्ट छे भाई। घणी सुहाणी!
स्टाइल है तो लाइफ है रोचक आलेख ...
regards
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स्टाइल बिना चैन कहां रेऽऽऽ
तो फिर स्टाइल मार ले....
बाजिब बात। मुझे एक भोजपुरी एल्बम की याद आ रही है जिसमें एक लड़की विवाहित सहेली से पूछती है कि पहले दिन पति के साथ कैसा रहा। विवाहित लड़की पूछती है- सीधे-सीध बताईं कि इस्टाइल में बताईं। सहेली का जबाब होता है- सीधे-सीधे का बतैवा,इस्टाइले में बता दअ।
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