Wednesday, September 30, 2009

कभी-कभी किसी की ना हां से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।

आज ब्लागवाणी एक ऐसा स्तंभ बन गया है, जिसके बिना हिन्दी ब्लागर असहाय महसूस कर रहे हैं। एक बेहतरीन मंच को लेकर इतना बवाल। वैसे इसका लौट आना अच्छा लगा। चाणक्य सूक्ति के अनुसार एक अच्छे इंसान को उस जगह से दूर रहना चाहिए, जहां किसी की निंदा की जाती है। क्योंकि कुछ देर बाद वहां उसकी भी निंदा की जायेगी। अराजक होते जा रहे हिन्दी ब्लागिंग के परिवेश में इस सूक्ति को सौ फीसदी सही पाइयेगा। लोगों को पसंद या नापसंद को लेकर क्या गया बवाल इस कदर विवादित हुआ कि ब्लागवाणी की सेवा ही समाप्त कर दी गयी थी। वैसे निष्काम कर्मयोगियों को निर्भयता का पाठ भी पढ़ना होगा। जब आप खुद को ऐसे सार्वजनिक मंच पर ले आये हैं, जहां से पीछे मुड़ना असंभव लगता है, तो एक सच्चे कर्मयोगी की तरह अपने कर्म को भी अंजाम देते रहना होगा। लेकिन इसके साथ ही ब्लागर महोदय सब भी सिर्फ गरियाने के लिए टिपियानेवाले धंधे से बाज आयें। कहा जाता है कि दौड़ में रहियेगा, तब रेस में जीतेंगे, लेकिन यहां तो दौड़ के लिए जरूरी पैर को काटने की कवायद चालू रहती है।

जिंदगी से जरूरी एक स्टेटमेंट आपके लिए --


कभी-कभी किसी की ना हां से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। जिंदगी में कई ऐसे पड़ाव आते हैं, जहां लोग ना कर जाते हैं। मैंने भी ना करना सीख लिया है, जहां मेरी सीमाओं का अंत होता है। क्योंकि मुझे काम से ज्यादा अपनी जिंदगी से प्यार है।

2 comments:

Mohammed Umar Kairanvi said...

भाई गपशम में एक बात बताओ कि ब्लागवाणी कैरानवी से घबराता है क्‍या?, उसे क्‍यूं नहीं देता अपना मार्का, एक से एक बदनाम सूर्माओं का इसने दिया है,

कैरानवी वही है जिसके आप गवाह हो कि उसने राजवी गांधी की बहस बरबाद की थी, अब देखो हिन्‍दू-मुस्लिम दोस्‍ती की मिसाल कायम करदी

''क्या "नेस्ले" कम्पनी, भारत के बच्चों को "गिनीपिग" समझती है? Nestle Foods GM Content and Consumer Protection''
http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2009/09/nestle-foods-gm-content-and-consumer.html
डायरेक्‍ट लिंक

Lalit Pandey said...

कौन कहता है कि बतमीज ब्लागियों को सबक सिखाया कठिन है, एक बार मिलकर उनके मुकाबले की तो सोचो यारो....

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