एक पंडित जी थे। उन्हें खुद के विद्वान होने का दंभ था। चारों वेदों के ग्याता थे। पूरी दुनिया उनकी विद्वता से कांपती थी। एक बार रास्ता पार करने करने के क्रम में नदी मिल गयी। वह नाव पर बैठकर नदी पार करने लगे। नाविक अपना नाव मस्त होकर गीत गाते हुए चला रहा था। पंडित जी ने नाविक से पूछा-वह कितना पढ़ा है। नाविक ने बताया कि उसने थोड़ी सी पढ़ाई की है। पंडित जी ने कहा कि उसका जन्म बेकार हुआ। फिर कहा कि अच्छा वेद पढ़े हो या नाम सुने हो, तो उसने उसका भी नहीं में जवाब दिया। इस पर पंडित जी ने अगला सात जन्म बेकार होने की बात कही।
इसी बीच नदी में तूफान आ गया। नाविक ने पूछा-पंडित जी तैरना जानते हैं। पंडित जी ने कहा-वह तैरना नहीं जानते। इस पर नाविक ने सीधे नदी में छलांग लगा दी और कहा-पंडित आपको तैरना नहीं आता। अब आप क्या करेंगे? आपका ये जीवन बेकार हो गया। मैं चला। मुझे तो तैरना आता है।
और यह कहते हुए उसने नदी में छलांग लगा दी।
अब यहां ये बताना जरूरी है कि विद्वान होना ज्यादा जरूरी है या प्रैक्टिकल यानी व्यावहारिक होना।
जिन्हें समझना होगा, वे खुद ही समझ लेंगे और जो न समझें, वे यह कहानी पढ़कर खुश हो लें।
3 comments:
सहमत हूं आपसे .. किसी भी सिद्धांत का महत्व उसके व्यावहारिक प्रयोग किए जाने पर ही माना जा सकता है !!
कुछौ नया सुनाईये न ,इ बडी बासी बात है !
ज्ञानवर्धक!!
-रवि प्रकाश
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