हम हो गए हैं बेचारा
चुनावी मौसम का है मस्त हाल
हर कोई देता अपनी ताल
कोड़ा जी दिखते परेशान
साथ नहीं देता कोई इंसान
मंदिर-मस्जिद का अब नहीं कोई मोल
पार्टियों का है सबकुछ गोल
कैसे करेंगे बेड़ा पार
नेता जी सोचते यही हर बार
हम कहते हैं कि अब की बार
नहीं जिता पाएंगे यार
देख के ये दुनियादारी
हमारी मारी गयी होशियारी
किसको देखें, किसको पूजें
यही फेर में हम सब दूजे
सर पटक-पटक कर चल रहे
ब्लागिया कर टेंशन मिटा रहे
फुर्सत मिली, तो सोचेंगे
कैसे हम भी पॉलिटिक्स में कूदेंगे
तिकड़म, भिकड़म, टेक्निक जानकर
रहेंगे सबको मानकर
कुछ तो करेंगे हम अपना उद्धार
नैया कराएंगे अपनी पार
1 comment:
"हमारी मारी गयी होशियारी
किसको देखें, किसको पूजें
यही फेर में हम सब दूजे
सर पटक-पटक कर चल रहे
ब्लागिया कर टेंशन मिटा रहे "
बहुत सही कहा आपने !!!
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