Thursday, December 3, 2009

अरे हुजूर पा नहीं... खा देखिए...





रवींद्र पांडेय वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार हैं। उनके व्यंग्य जीवन और राजनीति के यथार्थ को बेहतरीन तरीके से स्पष्ट करते हैं। दैनिक हिन्दुस्तान में ये व्यंग्य झारखंडी झटका के कॉलम के नाम से प्रकाशित होते रहते हैं। ---------------------------------------------------------------------------------------
मंगरा सर पर हाथ की टोपी बनाए नाच रहा था। गा रहा था... खा. खा.. खा...। राह चलते लोगों को आवाज लगा रहा था.. आइए.. आइए.. एडभांस में टिकट बुक कराइए.. .पा का टिकट नहीं मिला, तो खा का टिकट ले जाइए..। आज ही रिलीज हो रही है.. .मंगरा प्रोडक्शन की सुपर-डुपर हिट फिल्म खा..। खुद देखिए.. घरवाली को दिखाइए.. जुगाड़ बैठ जाए, तो बगलवाली को भी ले जाइए...। नई थीम.. नई कहानी..आपके चहेरे झारखंड की कहानी.. सुनिये उसी की जुबानी...। पा का हीरो पीड़ित है प्रोजेरिया से। खा, का हीरो जूझ रहा है खाबरिया से। बहुत ही खतरनाक होता है खाबरिया रोग...। बचपन में ही आदमी बूढ़ा दिखने लगता है। आपका नौ साल का झरखंडवा भी ६० साल के बुढ़ऊ जइसन दिख रहा है। .. मल्टी स्टार वाली फिल्म है.. खा..। एक से बढ़कर एक खाऊ-पकाऊ दिखेंगे आपको...। ये ट्रांसफर में खाते हैं...पोस्टिंग में खाते हैं। एमओयू में खाते हैं, लीज पट्टा में खाते हैं...। लाल कार्ड में खाते हैं, वृद्धा पेंशन में खाते हैं। बिना खेल कराये भी खा जाते हैं। खुद भी खाते हैं। बोरा में भर-भरकर अपने चहेतों को भी खिलाते हैं। जितना खा सकते हैं, खाते हैं, बच जाता है, तो देश-विदेश के खातों में डाल आते हैं। ये खाते रहते हैं और गाते रहते हैं, खा ले.. खा ले.. ओ मोरे राजा। जो नहीं खा पाते, वे गाते हैं, रहा न जाए, जिया ललचाए..। इसी बीच मार्मिक सीन भी आता है.. मंगरा का बुतरू खानेवालों से बोलता है, ए चचा तनि हमको भी चटाइए न...। फिल्म में होटवार लेबोरेटरी का भी सीन है। वहां खाऊ-पकाऊ वायरसों की पाचन शक्ति पर रिसर्च चल रहा है। कुछ वारयस पकड़ में आए हैं। होटवार लेबोरेटरी में भुजिया-रोटी खाते दिखते हैं। वे धूप में बैठे हैं। एक-दूसरे का मुंह देख-देख के चौंक रहे हैं। अरे, इसका मुंह भी तो मेरे जितना ही बड़ा है, तो फिर खाने में यह हमसे आगे कैसे निकल गया। .. उन्हें अपने कुछ और चॉकलेटी वायरस साथियों का इंतजार है...।


उड़ती.. उड़ती खबर पहुंची है कि वे भी होटवार पहुंचने ही वाले हैं। .. उधर वे साथियों का इंतजार कर रहे हैं, इधर झरखंडवा कूढ़ रहा है। अपने बाल नोचने की कोशिश करता है। पता चलता है, उसके सारे बाल झड़ चुके हैं। गुस्से में दांत काटने की कोशिश करता है। पता चलता है कि सारे दांत झड़ गए हैं।.. वह शीशे के सामने भागता है। शीशे में एलियन जैसी अपनी शक्ल देखकर घबराता है। उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा रहा है। वह चिल्लाता है, अरे कोई है। कोई तो विकास की रोशनी जलाओ। हमको इन खाऊ-पकाऊ वायरसों से बचाओ। .. नक्कारखानों में तूती से गूंजती है उसकी आवाज... बहुत कपरबथी वाला सीन है भइया लोग.. देखिएगा, तो कपारे पीटते निकलिएगा...।





साभार - हिन्दुस्तान

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive