Friday, December 25, 2009

गरम चाय

उफ्फ!! ये ठंडी-ठंडी हवा और कंपकंपाहट। साल के इन अंतिम दिनों में दो ही चीजें अच्छी लगती हैं, गरम चाय और कंबल। गर्म चाय के बिना उनींदी आंखें नहीं खुलती। पैर आगे नहीं बढ़ते। एक चाय की प्याली और मीठी मुस्कान से सारे विवाद छूमंतर हो जाते हैं। टेबुल पर आप बहस न करें, सिर्फ प्याली के साथ चंद घंटे बिताएं अपनों के साथ, तो शांत, स्थिर मन एक नयी रौशनी की पहचान कराता है, जिसके सहारे आपका चिंतन आगे बढ़ता है धीरे-धीरे। एक चाय की प्याली की एक सिप आपको जन्नत की सैर भले न कराए, लेकिन सुखद अहसास ऐसा करा जाता है कि आप उसके दूसरे सिप के लिए लालायित रहते हैं। चाय और होंठों के बीच के फासले हर वक्त कुछ ऐसे मिटते रहते हैं कि आपकी चाहत, आपका ख्वाब, आपका नजरिया सबकुछ उसीमें सिमटता चला जाता है। चाय पीने के मामले में कोई क्लास नहीं होता। कोई वर्ग नहीं होता। कोई ऊंचा-नीचा नहीं होता। प्रतियोगिता की तैयारी करते छात्रों के लिए चाय जैसे बड़ा हमसफर कोई नहीं होता।

2 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अब तो दूध भी नकली और चाय भी नकली मिलती है.

विनीत कुमार said...

भायजी,मीठी मुस्कान तो आपकी तरह मय्यसर नहीं लेकिन ब्लैक टी तो हम जागने के बाद जरुर बना लेते हैं।

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