Sunday, December 27, 2009
ऐ दोस्त, तुम यहां न आओ, तुम्हारी यहां जगह नहीं..
ये साल जा रहा है। मैं सर्दियों की गुनगुनी धूप को मुट्ठी में बांधने की कोशिश करता हूं। सर्द मौसम में ये धूप अच्छी लगती है। सुखद अहसास कराती है। अहसास, जिसे हम महसूस करना चाहते हैं सुख के रूप में। दुख को दूर से झटकते हुए भगाना चाहते हैं कि ऐ दोस्त, तुम यहां न आओ, तुम्हारी यहां जगह नहीं..। मेरी जिंदगी की तन्हाइयों में तुम नहीं हो। मेरी तन्हाइयां सिर्फ मेरी हैं...लेकिन उसमें तुम नहीं आओ मेरे दोस्त। मैं अपनी मुट्ठी में धूप को पकड़ने की कोशिश जारी रखता हूं, लेकिन दोपहर होने के साथ धूप सिकुड़ती जाती है। सूरज उसे खींचता दूसरे कोने में ले जाता है। शहर के बड़े अस्पताल से गुजरते वक्त हर रोज एक अहसास से गुजरना होता है। एक अहसास कि न जाने कितनी जिंदगियां अस्पताल की दीवारों के भीतर कराह रही होंगी। उनके हिस्से में इस साल के सर्द मौसम में एक मुट्ठी धूप नसीब नहीं होगी। सुख-दुख का चक्र, अंतहीन चक्र, चलता रहता है। मेरे माथे पर उभरती शिकन की रेखा, हर रोज, कुछ पलों के लिए सुखद अहसास के तले मिट जाती है, लेकिन फिर रास्ते में, घर पर, आफिस में बिना कहे लौट आती है। दर्द का आना-दर्द का जाना, जिंदगी की रफ्तार में शामिल है। साल के चंद बचे दिनों में ये सोच बार-बार उभरती है कि अगला साल खुशियां लेकर आए, शिकन को दूर भगा जाए..। लेकिन क्या ऐसा होता है? सांसों का आना-जाना चलता रहेगा, उसके बीच कहीं न कहीं आंदोलन, हिंसा का दौर भी चलता रहेगा। नये कीर्तिमान गढ़े जाएंगे, नये दोस्त बनेंगे। करामात के इंतजार में हम फिर अगले साल का इंतजार करेंगे कि शायद उस अगले साल में कोई नया गांधी या यीशु आएगा, हमारा तारणहार बनकर। हमारे विचारों का ये स्यूडो फार्म हमें छलता रहेगा। हम भी इसी तरह धूप को मुट्ठी में कैद करने की कोशिश में लुका-छिपी खेलते रहेंगे। गीता के स्थितप्रग्य होने का संदेश नये दर्शन का संदेश भी देता है कि हम-आप स्थिर रहें। सासों के बीच उतराते-गहराते जीवन को समझते हुए आगे बढ़ें। सुख-दुख का आना-जाना बस एक अहसास है, उस अहसास को बिना मरने देने, उसके बीच, तन्हाइयों को समेटते हुए, जीवन को जीते जाना है। रोटी के हर कौर के साथ जीवन का संघर्ष भी उसी तरह याद आता है। संघर्ष को सुख-दुख के दायरे से हटाकर कर्म के उच्च स्तर पर प्रतिस्थापित करने की अभिलाषा हमारे जेहन में हो। लेकिन यहां ये इतनी गहराई लिये सोच मुझे, आपको कितनी दूर तक ले जाएगी। जो भी हो, सर्द मौसम की इस एक मुट्ठी धूप को पकड़ने की कोशिश जारी है। मेरी कोशिश.. मेरी तन्हाइयों और मेरी सांसों के उतार-चढ़ाव के बीच में..। माफ कीजिएगा, अगर आपके मन को कोई तकलीफ हुई हो तो.... नये साल की पुनः मुबारक के बाद, सर्द मौसम की गुनगुनी धूप के अहसास के साथ........
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1 comment:
ye kram to aise hI chalta rahta hai aur chalta rahega.
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