Monday, December 28, 2009

जो भी हो, संवाद दोतरफा होना चाहिए।

आज-कल जब किसी से चैट करते हैं, फोन पर बातें करते हैं, तो एक जबर्दस्त किस्म की हड़बड़ी रहती है। मैं भी नहीं समझ पाता, कैसी? क्यों हड़बड़ी रहती है अपनी बातें कहते जाने की। उगल देने की सारी बातें। फीडबैक का इंतजार किए बिना। बिना ये जानने की चेष्टा किए बिना कि मेरा अगला पार्टनर किया चाहता है? इसे एक किस्म की राजनीति भी कह सकते हैं? अपने स्वार्थ के हिसाब से सिर्फ अपनी बातें रखते जाने की। ये स्वार्थ है या कुछ और। अंतरमुखी स्वभाववाला आदमी फीडबैक के मामले में धनी होता है। वह अंदर ही अंदर फीडबैक के हिसाब से खुद को तैयार रखता है। कम्युनिकेशन की मूल अवधारणा फीडबैक को नकारना कम्युनिकेशन को खत्म करना रहता है। ब्लाग स्तर पर भी एकतरफा लेखन फीडबैक की कमी के कारण बेजान हो जाता है। बोलते समय, थोड़ा रुककर बोलना फायदेमंद होता है। मौन को महत्व देना भी संवाद को बेहतर बनाता है। मैं ये लिखने की सोच रहा था कि क्योंकि ज्यादातर मामलों में आज-कल लोग खुद की कहानी कहने में ज्यादा रुचि रखते हैं। हम खुद के बारे में ज्यादा क्यों बताएं? क्यों नहीं दूसरों की सुनें। हमें फुर्सत नहीं। पता नहीं हम किस किस्म की हड़बड़ी में रहते हैं। जो भी हो, संवाद दोतरफा होना चाहिए। इससे ही हर बात साफ भी होती है।

5 comments:

Udan Tashtari said...

विचारणीय बात कही!!


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

श्यामल सुमन said...

सचमुच हालात तो यही है। कुछ ही दिन पहले की लिखी पंक्तियाँ हैं कि-

सभी आधुनिक सुख पाने को हरदम करे प्रयास।
इस कारण से रिश्ते खोये आपस का विश्वास।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।

पूरी कविता का लिन्क निम्न है-
http://manoramsuman.blogspot.com/2009/12/blog-post_13.html

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

संवाद तो होता ही दुतरफा है. एकतरफा के बारे में क्या कहा जाये.

प्रवीण त्रिवेदी said...

कोशिश करेंगे कि आगे से दुतरफा रहे .......और बहु तरफ़ा रहे !!

वैसे मौन की भी अपनी महिमा है ...कोई दो राय नहीं इस पर !

हरकीरत ' हीर' said...

बोलते समय, थोड़ा रुककर बोलना फायदेमंद होता है। मौन को महत्व देना भी संवाद को बेहतर बनाता है।

सच .....लीजिये हम मौन हो जाते हैं .....!!

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