Saturday, January 2, 2010

हिन्दी भाषा को समृद्ध करने की अपील हो, तो टिप्पणी देने के मामले में पैमाना रखें जनाब

जिस दिन मदर टेरेसा ने लाचारों की सेवा के लिए कदम बढ़ाया होगा, उस दिन उन्होंने क्या सेवा के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित किया था। शायद नहीं। जिस दिन गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका था, उस दिन उन्होंने क्या राष्ट्रपिता बनने का संकल्प लिया था, शायद नहीं। बहुतेरे लोग जो इस दुनिया में नाम कमा रहे हैं या नाम कमाकर गुजर चुके, उन्होंने कभी भी सेवा का संकल्प नाम कमाने के लिए नहीं लिया। एक बहस समीर लाल जी के द्वारा एक ब्लाग शुरू कराने और हिन्दी को आगे बढ़ाने की अपील को लेकर शायद शुरू हुई है या हुई होगी। सबसे पहला सवाल कि कया हिन्दी सचमुच में लाचार स्तर पर है या असहाय है। क्या हिन्दी गैर तकनीकी लोगों की भाषा है? क्या हिन्दी उन गरीब या कमजोर तबके की भाषा है, जिनकी औसत आदमी सिर्फ कमाने-खाने लायक है? काफी सारे सवाल हैं? इसमें सबसे अहम ये है कि सारे सवाल नहीं के बराबर है। भले ही हिन्दी वैश्विक भाषा न बने, लेकिन आज के दौर में हिन्दी जाननेवाला अधिकांश व्यक्ति आर्थिक रूप से मजबूत है। हिन्दी का बाजार बड़ा है। अब हिन्दी पसर रही है। लेकिन हिन्दी की चिट्ठा शुरू कराने से ज्यादा, इसे चिरकुटई के स्तर से ऊपर उठाने की कवायद को लेकर पहल की जरूरत आन पड़ी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि ब्लाग है मुफ्त का माल और सब होना चाहते हैं मालामाल। लेकिन इस मुफ्त के माल का कैसे उपयोग किया जाए, इसे लेकर बहस की जरूरत है। हम ज्यादा से ज्यादा चिट्ठा खुलवाते जाए, लेकिन उसमें सिर्फ बकवास और बेजरूरत का माल पड़ा रहे, तो कैसी सेवा होगी, सोचिये? और इसकी समीक्षा करनेवाले हिन्दी चिट्ठाकारों के प्रति कैसा भाव रखेंगे?भगवान करे, एक लाख का आंकड़ा हिन्दी ब्लागों का पार कर जाये, लेकिन इस एक लाख में अगर ९९ हजार बकवास ही हों, तो हो गया सत्यानाश। अब अगर अपील की जाये, तो ये भी अपील की जाये कि सकारात्मक लेखों के सहारे हिन्दी भाषा को आगे बढ़ायें। और कृपा करके बेहतर विषय चुनें। साथ ही टिप्पणी देने के नाम पर भी वैसी ही सख्ती बरतें, जैसे कि अच्छी सब्जी चुनने के नाम पर बाजार में बरतते हैं।

6 comments:

Anonymous said...

sehmat

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप से पूरी तरह सहमत हूँ। गुणवत्ता पर ध्यान देना जरूरी है।

निशाचर said...

मैं आपसे सहमत हूँ. रिश्तेदारी निभाने, गुटबाजी, नेतागिरी चमकाने की इच्छा रखने वाले ब्लागजगत को बख्श दें तो मेहरबानी होगी. यह एक जनमंच है. भले ही आज इसका दायरा छोटा है परन्तु मुद्दों पर चर्चा के लिहाज से इतना भी छोटा नहीं है कि इसे चाय की चुस्कियों पर लगने वाले गप सडाके के स्तर तक ले आया जाये. देश, समाज, व्यक्ति से जुड़े हजारों -लाखों विषय हैं जो रचनात्मक चर्चा की बाट जोह रहे हैं. ऐसे में बेवजह के मुद्दों को तूल देना और फिर सर फुट्टौव्वल, थुक्का फजीहत हिंदी ब्लाग की गरिमा को ही क्षीण नहीं करेगी वरन इसके जीवन का भी हास करेगी.गुजारिश है कि सच जरूर बोले परन्तु अपनी कुंठाओं का वमन यहाँ न करें. यहाँ पढ़कर भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है, जरूरी नहीं कि कुंजीपटल पर उँगलियाँ तोड़ी ही जाएँ. सहमति-असहमति, पसंद - नापसंद जाहिर करने के अनेकों शालीन तरीके मानव सभ्यता ने हजारों बरसों के अभ्यास से विकसित किये हैं. तर्क की धार दुनिया की हर तलवार से तेज होती है, उसका उपयोग करें, सबका भला होगा.

पुनःश्च:-प्रवचन गरिष्ठ पड़ गया हो तो हाजमोला की एक या दो गोलियां आवश्यकतानुसार चूस लें, आराम मिलेगा.

Anonymous said...

बच्चा प्रभात , कल्याण हो! बहुत अच्छा सवाल उठाया है, हमारी चमत्कारी भभूत तुम्हे भेजेंगे,
और तरक्की करोगे !

Udan Tashtari said...

आपकी बात विचारणीय है. पनपने दिजिये..गुणकारी तथ्य अपने आप उपर आ जायेंगे. चिन्ता न करें.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

विचारणीय मुद्दा है. बेहतर हो ब्लोगर खुद तय करें. अपना सार्थक लेखन करे (ब्लॉग धर्म निभाये).. नए लोगों को जोड़ना जरुरी है. तात्पर्य है हर अच्छे लेखन कौशल वालों को मंच मिले. उनको प्रोत्साहन मिले.
नववर्ष की बधाई और शुभकामनाओं सहित
- सुलभ

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