Monday, January 25, 2010
हमारी संस्कृति, जिससे हम दूर होते जा रहे
एक खबर थी कि कोई विदेशी अभिनेत्री गंगा में डुबकी लगाना चाहती हैं। मन खुश हो गया, बाप रे, हमारी संस्कृति से इतना प्रेम। इतना प्रेम तो हम भी नहीं करते। बनारस और पटना जाते भी हैं, तो डुबकी लगाना तो दूर, देह को सिकोड़ लेते हैं। हमारे चिंतन या कहें सोच का केंद्र बिंदु ये है कि विदेशी हमारी संस्कृति से इतने आकर्षित हैं। कोई-कोई तो पूरी तरह भारतीय अध्यात्म में रमे दिखते हैं। उनको देखकर लगता है कि एक भारतीय के तौर पर हम कितने अधूरे हैं। अपनी संस्कृति से दूर हैं। मुझे नार्मन विंसेंट की किताब द पावर आफ पोजिटिव थिंकिंग जब पढ़ने को मिली थी, तो बाइबिल के माध्यम से जीवन दर्शन को समझने का मौका मिला था। नार्मन साहब बाइबिल के संदेशों के मार्फत जीवन के सकारात्मक पक्ष के बारे में बताने की कोशिश करते हैं। आप-हम ज्यादातर लोग एक सिरे से धर्म, ज्योतिष या किसी ईश्वर से जुड़े संदर्भ की व्याख्या को बिना नापे-तौले नकार देते हैं। कोशिश करते हैं कि उसे उल-जुलूल करार दें। लेकिन सोचिये कि ज्योतिष या धर्म में किसी खास चीज के बारे में, किसी खास दिन के बारे में या किसी खास विषय वस्तु के बारे में कैसे एकदम सटीक तौर पर बताया गया है। इसमें तो दो ही चीज हो सकती है कि धर्म या किसी खास विषय वस्तु को प्रौपेगेंडा के तहत हजारों सालों तक पीढ़ी दर पीढ़ी चलाया जाता रहा हो। लेकिन ये असंभव मालूम पड़ता है। कोई भी धर्म सकारात्मक सोच का चरम बिंदु होता है, जिसके सिद्धांत को आधार बनाकर उसकी इमारत खड़ी की जाती है। वैसे में जब २१वीं सदी के दौर में कंप्यूटर और तमाम सुविधाओं के रहते अपने धर्म और संस्कृति के प्रति भ्रम की स्थिति देखता हूं,तो लगता है कि गलती हमारी वर्तमान जीवनशैली में ही है। एक बेहतर जीवन जीने और इस दुनिया को खूबसूरत बनाने के लिए ईश्वर या कहें पूर्व की पीढ़ियों ने एक ऐसी विरासत हमारे लिए छोड़ी है कि हमें उस पर नाज होना चाहिए। लेकिन हम हैं कि उसे दरकिनार कर देते हैं। ज्योतिष को लेकर भी जब बहस होती है, तो ऐसा ही लगता है। ज्योतिष की गणना के अनुसार इतना तो पता चल ही जात है कि किसी खास दिन, खास समय में क्या होनेवाला है? ग्रहण, त्योहार या कुछ और। सकारात्मक जीवन जीने के संदेश भी हर धर्म में भरे पड़े हैं। उन्हें कैसे दरकिनार कर दिया जाए? ये तो चंद स्वार्थीतत्व हैं, जिन्होंने पूरी बहस को अंधा मोड़ दे डाला है। मुझे तो लगता है कि हर धर्म को समझने की चेष्टा होनी चाहिए।
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2 comments:
सहमत.
हर धर्म को समझने की चेष्टा होनी चाहिए- यह बिल्कुल सही कहा आपने.
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