आज गणतंत्र दिवस था। कोहरे में टीवी पर परे़ड की सलामी लेतीं राष्ट्रपति को देखकर ये लगा कि दिल्ली में कोहरे का प्रकोप अभी भी कायम है। इन सबके बीच सलमान खान अभिनीत फिल्म वीर देखने का जज्बा जाग उठा। हमने पहले एक पोस्ट लिखी थी कि अंगरेजों के खिलाफ थीम पर काफी ज्यादा फिल्में बनीं, ये भी बन गयी, कुछ नया होना चाहिए। टिपियाते हुए खान का डायलॉग याद आता है कि अगर तुम अंगरेजों को इंडिया से इतनी ही नफरत है, तो १४० सालों से वहां क्यों हो? नायक की देशभक्ति पर हॉल में ताली की गूंजती है। चार हजार पिंडारियों की मौत का बदला लेने के लिए वीर के पिता धीरज के साथ वीर को बड़ा करते हैं। आपस में लड़नेवाले पिंडारी और राजपूत अंत में एक होकर विद्रोह कर देते हैं।
हिंसा-प्रतिहिंसा फिल्म का आधार है। आज हम अंगरेजों की दी गयी विरासत के बल पर झंडा ऊंचा करने की फितरत लिये आगे बढ़ रहे हैं। आज हम गणतंत्र हैं, तो यह एक लंबी यात्रा का परिणाम है। एक यात्रा, जिसके लिए काफी धीरज चाहिए। वीर फिल्म में नायक का प्यार को पाने का तरीका भी वीरतापूर्ण है। पटकथा थोड़े अंतराल के लिए धीमी होती है, लेकिन उसकी इंटरवल के बाद आक्रामकता बांधती है। फिल्म कर्तव्य और भावना के बीच संतुलन बनाए रखने की सीख दे जाती है। फिल्म की अभिनेत्री में कैटरीना कैफ की झलक कुछ हद तक काफी कुछ कह देती है। शायद सलमान को लेकर जेहन में कुछ-कुछ साफ हो जाता है। मिथुन चक्रवर्ती दद्दे के रूप में मुझे जंच गए। नीना गुप्ता की संजीदगी थोड़े समय के लिए ही सही, लेकिन ये बता जाती है कि अभी भी वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराना जानती हैं। वीर का संगीत भी भाया है। मुझे उसका संगीत कुछ-कुछ पुराने संगीत जैसा मालूम पड़ता है, जिसे गुनगुनाना चाहें, तो गुनगुना सकते हैं। जैकी श्राफ राजपूताना राजा के रूप में जंचते हैं। स्मार्टनेस है। अभी भी दम है, वाली स्थिति नजर आती है। अगर मुझे कहेंगे कि कैसा लगा, तो सौ में ७० नंबर दूंगा। गजनी को शायद ७५ दिया था। वैसे थ्री इडियट्स देखने के बाद शायद राय और बदले। वह सब अगली पोस्ट में।
Tuesday, January 26, 2010
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4 comments:
अब देख लेंगे!
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
चलिए आप कहते हैं तो देख के देखते हैं हम भी वैसे प्रोमोस देख के तो मन नहीं कर रहा था देखने का
अजय कुमार झा
मैं तो नई फिल्में देखता ही नहीं. आप कह रहे हैं अच्छी है तो देखने की कोशिश करता हूं.
अच्छी लगी चर्चा।
चलो..किसी ने तो सराहा।
किसी को तो समझ आया।
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