Sunday, January 31, 2010

दिल तो बच्चा है जी..

अपनी दोनों बेटियों को बढ़ते देख रहा हूं। खेलती-बदमाशी करतीं दोनों बेटियां हंसने को मजबूर कर देती हैं। उदासी भाग जाती है। 
उधर रेडियो पर गीत बज रहा है, दिल तो बच्चा है जी.. सचमुच दिल तो बच्चा है... कुछ करना चाहता है... बोलना चाहता है... चिल्लाना चाहता है... मैदान में दौड़ना चाहता है... बुलबुलों के बीच टकराते हुए उन्हें छूना चाहता है... सचमुच दिल तो बच्चा है... बड़े होने के गुमान में दिल की जगह दिमाग लगा दिया। दिमाग से बड़े हो गए, लेकिन उस बेचारे दिल की परवाह नहीं की। दिल तो अभी भी बच्चा है... अक्ल का कच्चा है। दिल पानी पर छप्पर-छप्प करने को कहता है.... गुदगुदी लगाकर हंसाने को कहता है... सचमुच दिल तो बच्चा है... मेरी बेटियां मुझे बच्चा बनने के लिए मजबूर कर रही हैं। उनसे उनकी भाषा में बात करना पड़ता है। उनकी तोतलाती आवाज ये बता जाती है कि कहीं किसी कोने में दिल अभी भी बच्चा है। वह अभी भी उन्मुक्त होकर बचपन की गलियों में भटकना चाहता है। लेकिन दुनियादारी का बोझ रोक देता है। खुद को काबिल समझते हुए हम गंभीरता ओढ़ लेते हैं। लेकिन गीत का संवाद दिल तो बच्चा है जी.... कुछ कह जा रहा है... कुछ..

2 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

चुस्त लेखनी सशक्त परिणाम, एक छोटे से विषय को भी रोचकता के साथ व्यक्त किया है.

Himanshu Pandey said...

सुन्दर प्रविष्टि । रोचक लिखाई !

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