Monday, January 18, 2010

हैती का हर कोना तबाह है।

हैती में आए भूकंप को देखकर जो तस्वीर उभरती है, वह ये है कि आप-हम प्रकृति की मार के आगे असहाय हैं। हैती का हर कोना तबाह है। हमें तो भुज में आया भूकंप भी उसी तरह याद आता है। याद आता है कि कैसे परिवार के परिवार तबाह हो गए थे। बिहार में आयी बाढ़ में भी यही स्थिति थी। हैती का जलजला थोड़ा बड़ा है। लेकिन इसके साथ नवनिर्माण का अवसर भी हाथ आता है। टेलीविजन पर जब वहां दूसरे देश के लोगों को मदद के लिए आगे बढ़कर काम करते देखता हूं, तो मन बार-बार उन्हें प्रणाम करता है। इस सेवा और इस समर्पण का कोई मोल नहीं है। भाषणबाजी से अलग ये लोग करने में विश्वास करते हैं। याद आता है कि बिहार में आयी बाढ़ और भुज में आए भूकंप के दौरान कई लोग वहां मदद के लिए निःस्वार्थ भाव से गए। न उनमें प्रचार की भूख थी और न संबंध बनाने की होड़। उनके योगदान को शब्दों में आंका भी नहीं जा सकता। जो भी हो, हैती में पुनर्निर्माण का दौर चले, यही आशा है।

2 comments:

संगीता पुरी said...

पकृति की मार से कोई नहीं बच सकता है .. इसके बावजूद हम प्रकृति के विरूद्ध काम करने में विश्‍वास रखते हैं !!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

प्रकृति से खिलवाड़ होना बन्द होना चाहिये.

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