Wednesday, February 3, 2010

एक ब्लागर की अमिताभ पर पोस्ट, विवाद, स्वयंभु समाज सुधारक

आज-कल एक बड़े एक ब्लागर चर्चा में हैं। अमिताभ पर अपने पोस्ट को लेकर। शुरू में मैंने उनके शीर्षक पर गौर नहीं किया। हमें लगा कि उन्होंने लिखा है-सदी का महालायक। लेकिन बाद में बहस और उनके फेसबुक पर स्टेटस पर गौर करने पर पता चला कि महानालायक लिख दिया। हमने बाद में लिखा कि अमिताभ या नरेंद्र मोदी के खिलाफ ज्यादा कुछ कहना पूर्वाग्रह से ग्रसित होना लगता है। यहां एक बात की चर्चा करना जरूरी है कि ऐसा कोई भी वाक्या या घटना बताएं, जहां अमिताभ ने अपने प्रतिपक्षी के खिलाफ ऐसे व्यक्तिगत कमेंट्स या बात की हो, जहां उन्हें व्यक्तिगत स्तर पर लड़ाई लड़नी पड़ी हो। 


अमिताभ एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन पर लिखने का मोह कोई छोड़ नहीं सकता। आज शाहरुख बोलते हैं कि तो उन पर खबरों का सिलसिला शुरू हो जाता है। वैसे में अमिताभ जैसे व्यक्ति को कोई कैसे छोड़ सकता है। साफ तौर पर कहें, तो आज मार्केट से सारा कुछ संचालित हो रहा है। यही मार्केट अमिताभ को भी बनाता है। अमिताभ एक ब्रांड का नाम है। जिस नाम के सहारे फिल्में, एड बिक जाती हैं। वैसे ही सचिन तेंदुलकर अगर कुछ बोलते या कहते हैं, तो उसमें दम होता है। आज तक तेंदुलकर किसी अनावश्यक विवाद में पड़ते नजर नहीं आए। यदि किसी ने जानबूझ कर विवाद पैदा करने की कोशिश न की हो तो।


बड़ा सवाल ये है कि ब्लागिंग जैसी नयी मीडिया में हम जब स्वतंत्र होकर लिखते रहते हैं, तो शब्दों के मामले में क्यों दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते? अगर आज सौ हिन्दी ब्लाग एक्टिव हैं, तो वे या तो ब्लाग जगत के स्वस्थ रहने की कामना कर रहे हैं, या ब्लागर मीट करा रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग का बहाना अंतिम जगह है, लेकिन यहां जो स्पेस फालतू की बतकही में जाया जा रहा है, उस पर कोई गौर नहीं रहा।


टिपियाऊ बकर-बकर में जीभ भी फिसल जा रही है और हम सब स्वयंभु समाज सुधारक और वरिष्ठ पत्रकार बनकर किसी की निंदा स्तुति या बखिया उधेड़ने का काम करने लगते हैं। हम शब्दों का इस्तेमाल किसके लिए कर रहे हैं, ये सोचना जरूरी है हम यहां ये इसलिए नहीं कर रहे कि हमें टीआरपी बढ़ानी है, ये इसलिए किया जा रहा है कि कम से कम आप-हम जिस संवाद के स्तर को पाना या बढ़ाना चाहते हैं,वह सही दिशा में चले। जब सड़क सबसे अच्छी स्थिति में हो और फैलाव लिये हो, तो तेज रफ्तार गाड़ियों की दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है। वैसी ही बात यहां हुई है। 


हम ब्लागर या पत्रकार हैं, तो मन में चाहा लिख दिया,चलेगा वाला भ्रम दूर होना चाहिए। चोट कीजिए, सटीक चोट कीजिए, लेकिन मर्यादा के साथ, तो आनंद आता है। 


संदेश....


हे ब्लागर, यहां कौन, किसके लिये आता है। आज जिसके लिए तुम टिपिया रहे हो, वह तुम्हारे लिये टिपियाएगा, आज जिसकी तुम निंदा कर रहे हो, वह कल तुम्हारी करेगा। तुम जो दे रहे हो, वह कहीं किसी सर्वर में सेव रहेगा, लोग पढ़ते रहेंगे। तुम्हारा दिया, सबके लिए रहेगा, तुम रहोगे या नहीं रहोगे, इसलिए टिपियाने से पहले कुछ देर उतार-चढ़ाव के बीच सोचों, लंबी सासें लो.... यही सच है। चिंतन करो, लेकिन चिंता न करो। क्योंकि तुम्हारा लिखा किसी को बदले न बदले, लेकिन जिसका जैसा कर्म है, उसे उसका फल मिलेगा।

4 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत।

Anshu Mali Rastogi said...

अमिताभ की बहस को दरकिनार करते हुए क्या कोई बहस किसानों की आत्महत्याओं या गांव-खेतों के निरंतर उजड़ते जाने पर नहीं चलाई जा सकती?

परमजीत सिहँ बाली said...

बिल्कुल सही लिखा आपने।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बिल्कुल सही. लिखते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिये.

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