Thursday, February 11, 2010
खुद को खुश रखिये, चाहे जिंदगी की धार किधर भी मुड़े।
मुझे याद है कि मैं जब श्रीदेवी और कमल हासन अभिनीत फिल्म सदमा देख रहा था, तो उसका अंतिम पार्ट नहीं देख पाया। सुन जरूर लिया। लेकिन उसके बाद नहीं देखा। फिल्म में अभिनेता एक अनजानी लड़की को याददाश्त खो जाने के बाद देखभाल करता है, प्यार में डूब जाता है, लेकिन बाद में याददाश्त वापस आने पर लड़की उसकी हर बात, अंदाज भूल जाती है। अंतिम में अभिनेता उस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाता। आज तक उस फिल्म के अंतिम पार्ट को नहीं देखा और न देखने की इच्छा है। कदम चूमती खुशियां एक झटके में दूर चली जाती है। मुट्ठी में खुशियों को कसने की तमन्ना धूल में मिल जाती है। खुशियों को कैसे हासिल किया जाए, ये शोध चलता रहता है। न जाने कितने लेखक और पोजिटिव थिंक टैंकर इस मामले को लेकर भाषण देते रह जाते हैं। एक इंटरव्यू में पढ़ रहा था कि हर काम को इतने समर्पण से करो कि लगे कि वह तुम्हारा अंतिम काम हो। क्या ऐसा हो सकता है? योजनाएं बनाते हम अगले की तैयारी करते रहते हैं। ऐसे में खुशियां कैसे आए? खुशियों के लिए कैसे तैयारी की जाए। अपना तो फंडा है कि आज को ही इस कदर जी लें कि कोई कसर न रहे। क्या मुस्कुराने के लिए कोई फंडा चाहिए? एक हालिया एड में खुद से वेलेंटाइन बनाने की बात कही गयी है। खुद को गिफ्ट दीजिए। किसी और को क्यों दें? खुशियों के लिए खुद को तैयार करना सबसे अहम है। इसके लिए कोई प्रोजेक्ट तय करने की क्या जरूरत? अगर दूसरों से कुछ पाने की अपेक्षा करते हुए खुशियों का इंतजार करेंगे, तो सदमा लगना तय है। उस सदमे से बचने के लिए खुद से पहले प्यार करें। वैसे वेलेंटाइन डे के बहाने जो नौटंकी चलती रहती है, उसमें ये जरूरी है कि खुद को उपहार देने की प्रक्रिया को शुरू किया जाए। इससे एक नयी परंपरा विकसित होगी। खुद को खुश रखिये, चाहे जिंदगी की धार किधर भी मुड़े।
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3 comments:
लेकिन हमें तो यही सिखाया जाता है कि दूसरों की खुशी में हमारी खुशी है. लेकिन आपकी सलाह पर ध्यान अवश्य देंगे. एक गीत ध्यान आ जाता है - "अपने लिये जिये तो क्या जिये"
wah kya bat klahi hai...khud ko gift karein,aur muskurayein.velentine pe akele logon ko ise khastor se padhna chahiye.ja raha hun ak gift kharidne apne liye ....shukriya...
"सदमा "-मेरी भी कुछ पसंदीदा फिल्मों में से एक है.
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