Thursday, February 18, 2010
गप्पबाजी से ऊपर उठना ही श्रेयस्कर है...
ब्लागिंग क्या है? ये सवाल अब हिन्दी के चुनिंदे उन ब्लागरों के लिए हैं, जो सक्रिय हैं। सवाल ये है कि हम अगर किसी लेख पर मात्र चुनिंदे ब्लागरों के ही कमेंट्स या हिट पाते हैं, तो हमें सोचना होगा कि हम-आप क्या कर रहे हैं और हमारा स्तर कैसा है। ब्लागरों के एक-दूसरे से मिलने या एक-दूसरे को शाबासी देने से क्या हमारा-आपका हित होनेवाला है, सोचिये। जिस चीज को सबसे ज्यादा तरजीह दी जानी चाहिए, वह है बहस। बहस किसी मुद्दे पर। इसमें किसी प्रकार का अहं नहीं पालना चाहिए। हम लोग अंगर सिर्फ संबंधों के निर्वाह के दृष्टिकोण से इस ब्लाग लेखन को रखेंगे, तो इसका दायरा सिमटता चला जाएगा। कहीं ब्लागर मिलन समारोह या एक-दूसरे से परिचय प्राप्त करने से क्या इसका भविष्य बेहतर होगा, ये सोचना लाजिमी है। चंद सौ लोगों के बीच सिमट चुके इस माध्यम को लेकर सवालों का दौर खड़ा करना जरूरी है। जब बहस शुरू होती है और किसी की टिप्पणी या इश्यु पर कोई बात उठायी जाती है, तो उसे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाना कहां तक जायज है। अगर ऐसा होता है, तो जिन्हें आपत्ति हो, वे इस पब्लिक प्लेटफार्म का त्याग कर सकते हैं। साथ ही पर्सनल ओनलीवाले आप्शन को चुन सकते हैं। जब ब्लागिंग कर रहे हों, तो सहभागिता का परवाह करिये। सोचिये कि अगला कैसे अपनी बात रख रहा है। दूसरी बात कि किसी लेख का लिंक देना या बातों को रखने के लिए किसी मुद्दे का सहारा लेना जरूरी है, जिससे ये तो पता चले कि आखिर बहस का आधार क्या है? या सिर्फ खाली हवा
में हाथ-पैर मार रहे हैं। एक शब्द होता है, गप्पी। यानी जितनी गप्प चाहें, गांव के चौपाल पर करते रहें, कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे ही इस ब्लागिंग के चौपाल पर सिर्फ गप्पे हांकना कहां तक उचित है। गप्पबाजी से ऊपर उठना ही श्रेयस्कर है। दूसरी बात रही स्तर की, तो उसे भी बेहतर बनाइये। नहीं तो सिर्फ चुनिंदा शब्दों का इस्तेमाल करके टीआरपी भी बटोरते रह जाएंगे।
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गांव की कहानी, मनोरंजन जी की जुबानी
अमर उजाला में लेख..
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10 comments:
सही बात और सुझाव -शुक्रिया
चुने हुये शब्दों में सारगर्भित वार्ता
सवा सौ प्रतिशत सहमति न बनने का कोई प्रश्न ही नहीं !
हिन्दी ब्लॉग जगत के बारे में बिल्कुल सही कह रहे हैं आप .. मैं दो वर्षों से अपने ब्लॉग पर सार्थक बहस चाह रही हूं .. जो समर्थक हैं उन्हें सब पसंद आता हैं .. जो विरोधी हैं उन्हें सब बुरा लगता है !!
क्या सिर्फ टिप्पणियाँ ही अच्छे ब्लॉग की पहचान हो सकतीं हैं ?
ये गलतफहमी के सिवा कुछ भी नहीं , ये ख्याति की चाह हो सकती है , सम्बंधों की राह हो सकती है , मगर अच्छा लेखन क्या ये नींव लेके चल सकता है ........? वो जो रास्ता दिखाता है , उसका काम तो चलना है बेहतरी की ओर , वो रास्ते की भटकन में कैसे फंस सकता है ? मुफ्त में पाया है संपादक , बेशक हम भी मुफ्त में ही हैं काम करते , ये काम कहाँ हैं .....कुदरत का है ईनाम ......कद्र तो कर लें ?
क्या न ब्लॉगिंग को ब्लॉगिंग जैसा ही रहने दिया जाए!
प्रभात जी ,
मेरे ख्याल से आज लगभग बीस से पच्चीस हज़ार ब्लोग्गर्स तो हैं ही हिंदी भाषा में ब्लोग्गिंग करने वाले ,,,और जिनमें से लिखने , नियमित लिखने , ...और सबसे बढकर पढने वाले ...पढ कर उस प्रतिक्रिया करने वाले सौ भी नहीं हैं ...तो उसमें यदि आपको पढ कर टिप्पणी करने वाले उन्हीं चंद नियमित पाठकों में से एक हैं तो कोई आश्चर्य नहीं है मुझे ।
अब बात करते हैं ब्लोग्गर्स के आपस में मिलने जुलने को लेकर तो जहां तक मुझे लगता है कि अभी तक किसी भी ब्लोग बैठक में किसी ने भी ये कोशिश नहीं की है कि ब्लोग्गिंग की दिशा क्या होनी चाहिए , क्या लिखा जाना चाहिए , क्या पढा जाना चाहिए .....क्योंकि ये न तो सही है न ही संभव ..और सबसे बडी बात ब्लोग्गिंग के स्वाभाविक निरंकुश चरित्र के खिलाफ़ भी है । हां चूंकि हिंदी भाषी लोग आभासी होते हुए भी आभासी नहीं रहे हैं इसलिए मिल बैठना शायद अच्छा लगता है ।
और रही बात किसी की टिप्पणी या पोस्ट को मुद्दा बनाने की ...तो हुजूर मेरा मानना तो ये है कि मुद्दे को मुद्दा बनाएं तो ज्यादा बेहतर नहीं होगा क्या ???और फ़िर एक बात और अन्य भाषाओं की ब्लोग्गिंग का संसार तो इतना बडा है कि किसी की टिप्पणी पर पोस्ट बन रही है ये उसे पता भी नहीं होता ....शेष ..आपकी चिंता जायज़ है ...मार्गदर्शन करते रहें
अजय कुमार झा
इसमें तो इतना ही कहूंगा कि मुंडे-मुंडे मति-भिन्न:
लेकिन आपकी बात में दम है कि गंभीर मुद्दों पर बहस भी होना चाहिये, केवल टिपियाने से काम नहीं चलेगा. दरअसल ब्लाग में इतना अधिक स्कोप है कि आप की जो इच्छा हो लिखें, जो इच्छा हो पढ़ें. ऐसी स्वतन्त्रता और कहां.
ंयही सवाल मेरे मन में कई दिनों से कौंध रहा है कि हम ब्लॉगिंग क्यों कर रहें है। पता नहीं क्यों। पोस्टों पर ज्यादा यही देखने को मिलता है मैं भी उसी में हूं लगत न समझे। सवाल आपने सही उठाया है जबाब भी खोजिऐ
कुछ दिनों पहले हम भी ये सवाल पूछ चुके हैं कि आखिर हम लोग ब्लागिंग किस लिए कर रहे हैं ??? लेकिन हमारेअ लिए तो आजतक भी ये सवाल अनुत्तरित है....
भाई प्रभात ऐसे मत करो
खुद आपने बुला लिया कि आइये करें गपशप और हम आये तो जगते हो कि "गप्पबाजी से ऊपर उठना ही श्रेयस्कर है" अब हम आये है तो थोडी गपशप तो हो. अब आपने कह दिया और हमने मान लिया. इस बार ६ लोग मिले अगली बार ६ नही मिलेन्गे १६ मिल लेन्गे. और हा इस बार आपसी परिचय भी नही करेन्गे कुछ नये विमर्श के बिषय चुन लेन्गे.
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