Saturday, February 20, 2010

चलो मिलकर देते हैं एक-दूसरे को शाबासी-भगाओ इसको मेरे साथी।

एक था मेंढक। कुएं में थी उसकी दुनिया। कुएं की मछलियों ने उसे चुना राजा। मेढक को हो गया घमंड, बजाने लगा सबका बाजा। जब वह कुछ कहे, तो सब बोलें-कैसे करें इनकार, जब बोलें सरकार। जिंदगी मजे में बीत रही थी। एक दिन कुएं में ऊपर की झाड़ी हटा दी गई। सूरज की रोशनी कुएं में पड़ी। तब सबने कहा-अरे, इत्ती बड़ी दुनिया-हम यहां बजाएं हारमोनिया। सबने कहा-चलो मिलकर देते हैं एक-दूसरे को शाबासी-भगाओ इस मेढक को मेरे साथी। मेढक बेचारे का हो गया बुरा हाल। सबने कहा-तुम टुच्चे, लफंगे हो कंगाल। जाओ दुनिया की सैर करो, कुछ ऐश करो। मेढक ने मारी छलांग, देखा दुनिया है बड़ी मस्त राम। तभी एक साथ बगल से आया

फरमाया ...

हुजूर

आराम बड़ी चीज है, चद्दर तान के सोइये
काहे किसी की सुनिये, काहे किसी की रोइये



गेस करें मेढक कौन है..

1 comment:

अविनाश वाचस्पति said...

कैसे गैस करें
महंगी होने का
है अंदेसा ?

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