बजट को लेकर पूरा जगत चिंतित है। कैसे होगा, क्या होगा, कौन सा तरीका या टैक्स लगाया जाएगा। आज का अखबार अभी से तीन-चार पन्न बजट पर देंगे। लेकिन हमारी सिर्फ एक मांग है, भैया आप चीनी और दूध का दाम घटा दो। पहले गप्पे मारने के लिए चाय का सहारा होता था। बात करते-करते दो-तीन प्याली चाय पी लेते थे। लेकिन अब डिमांड करने पर चीनी के दाम बढ़ जाने के उलाहने मिलते हैं। मन खट्टा हो जाता है। बिना चीनी के चाय पीते समय लगता है कि कहीं डायबिटीज टाइप की चीज का शिकार तो नहीं हो गया। क्योंकि अब तक वही लोग चीनी का इस्तेमाल करने से मना करते थे, जो डायबिटिक थे। सुषमा स्वराज सदन में बता रही थीं कि एक तरफ चीनी की कमी का रोना रो रहे हैं, वहीं इसका निर्यात किया जा रहा है। हमें तो कुछ नहीं चाहिए, बस पवार साहब चीनी के दाम घटवा दें। कम से कम चाय तो हलक के नीचे आराम से उतरेगी। नहीं तो ये भी पीना हराम हो जाएगा।
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Thursday, February 25, 2010
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1 comment:
क्या कह रहे हैं झा साहब. कुछ तो ख्याल कीजिये बेचारे चीनी मिल मालिकों का.
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