Monday, March 29, 2010
बिहार की राजधानी पटना का नाम पाटलिपुत्र कर दिया जाये.!
एक सवाल ये उठाया जा रहा है कि बिहार की राजधानी पटना का नाम पाटलिपुत्र कर दिया जाये। हमने एक जगह कमेंट्स भी दिये कि नाम में क्या रखा है। नाम से क्या परिवर्तन हो जायेगा। बंबई को मुंबई कहने लगे या मद्रास को चेन्नई, तो क्या हो गया? इन सारे संदर्भों में ये बात काबिलेगौर है कि हम लोग अब भी दकियानुसी विचारधाराओं से ऊपर नहीं उठ पाये हैं। हम ये नहीं चाहते कि हमारी जमीनी हकीकत पर बहस हो। सवाल ये उठना चाहिए कि विकास के जो मापदंड निर्धारित किये गये हैं, उसमें कहां खामियां रह गयी हैं। हमारा बिहार ऐसा था, वैसा था, लेकिन आज कहां है? ये बहस पिछले दो-चार सालों में ज्यादा चली। फायदा भी हुआ। लेकिन बिहारी अस्मिता के नाम पर लगता है कि हम फिर से अंधे कुएं की ओर मुड़ रहे हैं। हम यहां रहते झारखंड में हैं, लेकिन विभाजन के बाद इसकी बदहाली पर दुखी इतने हैं कि कुछ कहा नहीं जा सकता। हमारे हिसाब से अस्मिता, इज्जत, भक्ति या सम्मान के शब्द वैचारिक स्तर पर लोगों को धोखा देने के लिए बनाये गये हैं। नीतीश कुमार, बिहारी माइंड सेट को बदलनेवाले अपील के साथ काम कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ ये वैचारिक अंधता भी बढ़ रही है कि बिहार के गौरव को साथ लेकर चला जाये। अतीत को वर्तमान की चादर बनाकर कितने दिनों तक चला जायेगा, ये सवाल है? सवाल वही है कि बिहार में प्रगति के नाम पर जो पक्षपात का आरोप लगा है, उसे कैसे दूर किया जाये और संपूर्ण बिहार को विकास पटल पर कैसे रखा जाये। झारखंड अलग होने के बाद बिहार सचमुच बदला है, तो उस बदलाव व्यावहारिक स्तर पर विचार में भी दिखना चाहिए। क्षेत्रीय गौरव से अलग इस बात पर जोर हो कि राष्ट्र की प्रगति में बिहार या झारखंड की कितनी हिस्सेदारी रहे। नहीं तो बस बयानों की जुगलबंदी में हम खुद को २० सालों के बाद हाशिये पर पायेंगे।
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4 comments:
मैं भी समर्थन करता हूँ....
,
http://laddoospeaks.blogspot.com/
पाटलिपुत्र ही होना चाहिये.....
हां, एक एजेण्डा भी सार्वजनिक हो कि पाटलीपुत्र को यह बनाना है बीस साल में!
नाम बदलिये। फिर हज़ारों हज़ार जगहों पर नया नाम लिखने के लिये, लाखों करोङों का जनता की मेहनत का पैसा, कुछ भाई भतीजों की जेबों में जायेगा।
हम कब तक अपने आप को इस तरह ठगाते रहेंगें
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