आप फेसबुक पर जायें और किसी हीरो, हीरोइन का नाम लेकर उनकी आइडेंटीटी खोजें, तो हो सकता है कि २०-३० से ज्यादा एक ही नाम के आइडेंटीटी मिल जायें। कभी-कभी तो पुरुषों के पहचान के नाम पर हीरोइनों की फोटो चिपकी रहती है या फिर किसी हीरो की। फरजी पहचान के सहारे अन्य से संपर्क करने की ये कवायद कहीं ज्यादा तेज होती जा रही है। वैसे में फेसबुक जैसी जगहों पर खतरा ज्यादा है कि आप अपनी व्यक्तिगत जानकारी किस हद तक सार्वजनिक कर रहे हैं। कभी-कभा लगता है कि लोग खुद का परिचय देने से भी डरते हैं। जब आप वर्चुअल वर्ल्ड का हिस्सा बने हैं, तो खुद को पाक साफ यानी असली परिचय के साथ प्रस्तुत करना ज्यादा उचित है। एक बात और यहां पर जब स्त्रीगण अपनी उम्र के आगे वर्ष अंकित नहीं करतीं, तो और भी ताज्जुब होता है। कब तक ये दकियानुसी परंपरा यानी उम्र छिपाने की कवायद जारी रहेगी। आप कुछ न बताएं, आपका चेहरा तो सबकुछ बता ही देता है। फेसबुक संस्कार भी गढ़ रहा है और भाषा को बेहतर बनाने को प्रेरित भी करता है। कम से कम अंगरेजी तो हम जैसे हिन्दी टिपियाउकारों का बेहतर बना ही रहा है। अंग्रेजी दां लोगों की चिल्लपों के बीच खुद को काबिल बताने के लिए हम भी इसी बहाने अंग्रेजी में टिपिया देते हैं। संपर्कों की दुनिया के इस निराले खेल ने कई लाभ दिये हैं, तो परेशानियां भी दी हैं। सुना है कि कानूनी हिसाब से भी इन सोशल साइटों पर दी गयी जानकारी आपके जीवन की हर पहलू के प्रमाण की तरह मानी जायेंगी। सवाल
वही है कि फेसबुक जैसी साइट पर आप फरजी आइडेंटीटी बनाकर किसे बेवकूफ बना रहे हैं। खुद को या हमें। क्योंकि आपकी हर कवायद, आपकी हर प्रतिक्रिया आपके स्तर को बयां कर जाती है। अगर आप चिरकुट हैं, तो चिरकुटई के लक्षण भी दिखने लगते हैं। अगर बौद्धिक हैं, तो बुद्धिमता भी और अगर अन्य कोई दूसरे शौक रखते हैं, तो वे भी एक हद तक नजर आते हैं।
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2 comments:
ये तो सरासर धोखा है........."
मैं तो फेसबुक पर जा ही नहीं पता. आरकुटिया जरूर लेता हूं कभी-कभार.
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