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Monday, April 2, 2012

फेसबुक... फेसबुक.... फेसबुक.....

अच्छा अगर आपसे कहूं कि आप फेसबुक पर हमारे दोस्त हैं... वो भी दो हजार समथिंग दोस्तों में.... तो क्या आप अचकचाएंगे तो नहीं. हो सकता है कि आप मेरे फ्रेड्स लिस्ट में हों. लेकिन अनजान हों. कुछ वैसे ही जैसे लोग कमरे में कहीं किसी जगह रुपए रखकर भूल जाते हैं. और वक्त-बेवक्त कभी उन्हें वो रुपए हाथ लग जाते हैं, तो उनकी खुशी की सीमा नहीं रहती.

बहुत से लोग फेसबुक को गरियाते हैं, तो कई लोग इसे एक नशा, एक किस्सा या रस्मअदायगी का माध्यम बताते हैं. मेरे लिए फेसबुक क्या है, मैं भी नहीं जानता. हां, इसे न तो गाली दे सकता हूं और न ही इसे छोड़ सकता हूं. ये जानते हुए भी कि मेरे किसी स्टेटस पर बस दो या तीन कमेंट्स ही आते हैं. खुद की बेचारगी पर हंसते हुए दूसरों के कमेंट्स जरूर पढ़ता जाता हूं. हमेशा आब्जर्वर बनकर उन हजारों स्टेटस से गुजरते रहना, किसी किताब के पन्ने पलटने से कम नहीं लगता.

जिंदगी के हजारों पन्नों को तस्वीरों के मार्फत बयां करने की कोशिश को फेसबुक जिंदा रखे हुए है. फेसबुक तमाम अवरोधों, विरोधाभासों के बाद भी आपको ये तो एहसास करा ही जाता है कि आप कुछ नहीं...इस दुनिया में आप एक किरदार की तरह हैं. कभी-कभी गुजर चुके लोगों के स्टेटस पर जाकर गौर फरमाइएगा, तो लगेगा कि वो आपसे बात कर रहे हैं.

बतियाना शगल है, लेकिन टिपियाना, लगातार स्टेटस अपडेट रखना या करते रहना मजाक की बात नहीं. उन तमाम बंदों को शुक्रिया कहना चाहता हूं, जो तमाम लिंकों को यूं वजह या बेवजह, सनकपन में अपने स्टेटस पर डालते रहते हैं. हम भी अलसायी आंखों से क्रशर को बस ऊपर नीचे कर हर छोटी-बड़ी सूचनाओं से अवगत होते रहते हैं. फेसबुक बनते-बिगड़ते रिश्तों का गवाह भी है.

मेरे एक फेसबुक फ्रेंड अंशुमाल रस्तोगी जी का आज जन्मदिन है. मैंने फेसबुक खोलकर अपडेट देखते ही उन्हें तत्काल बधाई दी. कहां बरेली... कहां रांची. लेकिन दिलों के तार देखिए फेसबुक के माध्यम से जुड़ गए. दिल्ली के कई बंदे, कानपुर के कई हीरो और पटना के कई दिग्गज अपनी सूची में हैं. इतना तय है कि हम उन्हें जानते हैं. क्योंकि हम रोज उनकी शख्सियत से अपडेट होते रहते हैं. फेसबुक...ओस की बूंद की तरह हमेशा ताजा ही लगता है. दोपहर में ओपेन करो या शाम में... पुरानी बातें गुजरते वक्त के साथ आगे बढ़ जाती हैं. रह जाती है, तो सिर्फ फ्रेश अपडेट. वैसे मैं स्टेटस अपडेट करने में पीछे ही रह जाता हूं. फेसबुकिया बुखार देखते हैं कि कितने दिनों तक कायम रहता है.

Friday, January 21, 2011

शुक्रिया दोस्तों... शुक्रिया. (mission save RAM TOPPO)


एक राम हमारे कण-कण में बसे हैं. उनका नाम लेकर हम धन्य हो जाते हैं. हम मानते हैं कि हमारे ऊपर उनकी असीम कृपा बनी रहे. लेकिन उनके ही नाम वाले राम टोप्पो से भगवान राम ने आंखें फेर ली हैं. राम टोप्पो की मां की आंखों के आंसू रोते-रोते सूख चले हैं. गरीबी ऐसी कि राम को घर में बोन कैंसर होने के बाद भी घर में रखने को विवश हैं.

हमारे अखबार में खबर छपी और उसके बाद हमारे मित्र राम को बचाने और उसकी मदद करने की मुहिम में जुट गए. ऐसे में फेसबुक हमारे लिये सबसे अच्छा मंच साबित हुआ. कम से कम कई साथी इसके सहारे हमारे साथ जुड़ते चले गए. हमें ये गम नहीं कि हमारे सैकड़ों साथियों में से कुछेक ने ही मदद की बात रखी, बल्कि हमें खुशी है कि इन साथियों ने हमारे अभियान को हिम्मत बंधायी. राम को दूसरे-तीसरे दिन से मदद भी मिलनी शुरू हो गयी. 


हमारी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आते हैं. शायद हममें से हरेक के पास दुखी होने की एक कहानी जरूर होगी. लेकिन अगर हमारे अंदर की संवेदना इन दुखों के कारण मर जाए, तो शायद हम किसी की मदद नहीं करें. हमारे पास नहीं मदद करने के सौ बहाने भी हो सकते हैं. लेकिन अगर सारे लोग एक छोटी मदद, जिसमें कि एक दिन का खाना हो सकता है, राम को बचाने के लिए वित्तीय तौर पर करें, तो उसके बेहतर इलाज के लिए रास्ता खुल जाएगा.


रांची के डाक्टर राम को बचाने के लिए मुंबई या दिल्ली ले जाने की बात करते हैं. ये संभव है, अगर हम सभी मिल कर राम के लिए एक-एक पैसा जुटाएं.

राम की मां का एकाउंट नंबर भी खुल गया है.

NAME-CHANDU ORAIN

ACCOUNT NO...499110110003847

BANK OF INDIA, BARIATU, RANCHI

PLZ HELP AAALLL



अगर कोई मदद करना चाहे, तो इस एकाउंट में पैसे डाल कर मदद कर सकता है. हमारी इस मुहिम में स्थानीय स्तर पर चाइल्ड लाइन नामक संस्था का नहीं भुलाया जा सकने वाला सहयोग रहा. उनकी मदद से बैंक अकाउंट खोला गया. अभी इस मुहिम को और तेज करने की जरूरत है, जिससे उसका पूरा इलाज कराया जा सके. हम ये नहीं कह सकते हैं कि हम इसमें कितने सफल होंगे, लेकिन अगर राम की स्थिति को सुधारने में कामयाब हुए, तो इसे मैं अपने खुद के जीवन में सामूहिक प्रयास के एक चमत्कार से कम नहीं मानूंगा.

समाज में कई और भी राम होंगे.इस मुहिम के सफल होने के बाद दूसरे असहाय लोगों की मदद के लिए हम और हमारे सारे दोस्त ऐसा  प्रयास करेंगे, ये उम्मीद है. मैं फिर से उन सारे दोस्तों को, जिन्होंने किसी न किसी रूप से आगे बढ़ कर मदद की, शुक्रिया अदा करना चाहूंगा. उम्मीद है कि इस मुहिम में आगे भी कई लोग जुटेंगे.

फेसबुक पर कई मित्रों ने अपने तरीके से भी अपील को आगे बढ़ाया है, उसके लिए भी शुक्रिया. शुक्रिया दोस्तों... शुक्रिया.

Friday, December 24, 2010

नौकरी करनी है, तो फेसबुक को नौकरी के घंटे से बाहर ही यूज करें.

मेरी तन्हाइयों का साथी फेसबुक आज कल एक गजब की त्रासदी से गुजर रहा है. आफिस में लोग इसे संदेह की नजरों से देख रहे हैं. कई जगहों पर से खबरें आती हैं कि ये ब्लाक कर दी गयी हैं. जरा चिट्ठी-पत्री के जमाने को याद करिये. उस जमाने में धीरे-धीरे सूचनाएं लीक होती थी. कोई भी बात सात दिन बाद दूसरे जिले के गांव तक पहुंचती थी. आज हाइटेक होते जमाने में पलभर में गपिया कर इनफारमेशन शेयर कर लेते हैं.

इस फास्टनेस में हमने एक चीज खो दी, वह है विश्वसनीयता. हमारा विश्वास. हमारी जिंदगी में हमें खुद अपने साथी पर भरोसा नहीं रहता. वैसे ही कंपनी को अपने कर्मचारी पर भरोसा नहीं रहता. ये स्थिति किसी एक कंपनी में नहीं, बल्कि दुनिया की हर तीसरी कंपनी में है. वैसे जिस फेसबुक को लेकर टटेंशन है, उसमें काम करनेवाले कर्मचारी मस्त हैं. वे अपनी कंपनी में सबसे ज्यादा खुश हैं. जाहिर है कि फेसबुक कंपनी में फेसबुक बैन नहीं है. ये विचारों का आदान-प्रदान करनेवाला सिस्टम आज हिट है. कोई बंदा सेंटी होकर कभी कुछ लिख जाता है, तो कई लोग वहां उसके जज्बात के साथ अपनी बातें भी रख देते हैं. कई लोगों ने अपने पुराने मित्रों को खोज कर उनसे जुड़े हुए हैं. मेरी खुद दिल्ली में बैठे कई बंदों से दोस्ती हो चुकी है. रांची में बैठ बिना किसी खर्च के दोस्ती नुकसानदायक नहीं है.

वैसे इसमें लफड़ा तब होता है, जब फेसबुक को लेकर आदमी सेंटिया जाता है. काम के वक्त भी वह फेसबुक को खोल कर अपने विचार उड़ेलता है. ऐसे में कंपनी वाले भी क्यों ना सेंटियाए. यहां अपनी जिम्मेदारी को समझने की बात होनी चाहिए. जब भी सेंटियाइए, तो दिल को कुछ देर शांत रख कर सही तरीके से सोचिये. अपना आउटपुट बेस्ट दीजिए और काम खत्म होने के बाद या घर पर १५ से ३० मिनट तक फेसबुक को समय दीजिए. ये एक सबसे हिट तरीका हो सकता है. कहने का मतलब है कि कंपनियां अगर सेंटिया रही हैं,तो इसलिए कि आप या हम खुद सेंटिया जा रहे हैं. प्रतिस्पर्द्धा का युग है. ऐसे में थोड़ा ग्लोबल होकर तो सोचना ही होगा. वैसे भी ताली एक हाथ से नहीं बजती. इसलिए नौकरी करनी है, तो फेसबुक को नौकरी के घंटे से बाहर ही यूज करें.

Saturday, July 17, 2010

फेसबुक मित्रों आपकी तमाम शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद

फेसबुक पर मित्रों की लंबी फेहरिस्त है. जाने-अनजाने कभी टिपिया कर, तो कभी चैट बॉक्स पर जाकर बतियाने की प्रक्रिया जारी रहती है. १६ जुलाई को अपने जन्मदिन पर वहां पर बधाई देनेवालों की लंबी संख्या देखकर ये लगा कि इतने शुभचिंतक साइबर की दुनिया में मौजूद हैं.

 फेसबुक के बहाने अगर ३०-४० से ज्यादा लोगों के जेहन में हमने अपनी मौजूदगी दर्ज करायी है, तो मैं इसे अपनी सफल कोशिश कहूंगा. जब पूरी दुनिया में रिश्तों का बिखरना जारी है. लोग नए रिश्ते यूं ही तोड़ दे रहे हैं, तब बिना किसी स्वार्थ के देश और दुनिया के किसी छोर पर बैठे व्यक्ति द्वारा जन्मदिन के मौके पर बधाई देने आह्लादित यानी मन को खुश कर जाता है. कोई व्यक्ति आपके लिए खुशी की कामना कर रहा है, इससे बढ़कर और क्या बातें हो सकती हैं. जीवन में कई खुशियां शामिल रहती हैं, लेकिन मेरी ये खुशी कुछ अलग है. जाने-अनजाने घर बैठे मुझे फेसबुक ने इतने दोस्त दिए हैं कि शुक्रिया जैसा शब्द कहना छोटा पड़ जाएगा. हमारी जैसी पृष्ठभूमि रही है, उसमें जन्मदिन के दिन घर में ही खीर और हलुवा बनाकर खा-पीकर जन्मदिन मना लेने की प्रवृत्ति रही है. वैसे में फेसबुक पर मौजूद दोस्त ऐसे दिन में खुशियां बांटते हैं, तो लगता है कि अब इस दिवस को कुछ अलग तरह से मनाया जाए.

लेकिन मेरे साइबर दुनिया के दोस्तों मैं कैसे एक जगह पर सारे लोगों को बुलाऊं, ये आप ही बता सकते हैं. हमारी और आपकी मजबूरी समान है. जो गति तोरी वो गति मोरीवाली बात है. ऐसे में मैं तो यही कहूंगा कि मेरी ओर से आप धन्यवाद के प्रस्ताव को स्वीकार कीजिए और मुझे जिंदगी को बेहतर बनाने के तरीके बताते रहिए. कम ही दोस्त होते हैं, जो सही मोड़ पर सही दिशा बताते हैं. आपके स्टेटस पढ़कर जिस जानकारी की जरूरत होती है, वो तो ऐसे ही पूरी हो जाती है, लेकिन जन्मदिन के बहाने एक संवाद की ओर छोटा कदम आगे बढ़ा है, उसे और बढ़ाते चलिये. जिंदगी में आप जैसे दोस्तों का अहम स्थान है. कुछ दोस्त उम्र में भी बड़े हैं. उम्मीद है कि उनके अनुभव का भी लाभ आनेवाले दिनों में मिलेगा. रास्ते में जिंदगी का कारवां यूं ही आगे बढ़ता रहेगा, बस आपके सहयोग की दरकार है. आपकी तमाम शुभकामनाओं के लिए एक बार फिर धन्यवाद.

Saturday, March 27, 2010

फेसबुक पर चिरकुटई, अंग्रेजीदांओं की चिल्लपों और हम सब

आप फेसबुक पर जायें और किसी हीरो, हीरोइन का नाम लेकर उनकी आइडेंटीटी खोजें, तो हो सकता है कि २०-३० से ज्यादा एक ही नाम के आइडेंटीटी मिल जायें। कभी-कभी तो पुरुषों के पहचान के नाम पर हीरोइनों की फोटो चिपकी रहती है या फिर किसी हीरो की। फरजी पहचान के सहारे अन्य से संपर्क करने की ये कवायद कहीं ज्यादा तेज होती जा रही है। वैसे में फेसबुक जैसी जगहों पर खतरा ज्यादा है कि आप अपनी व्यक्तिगत जानकारी किस हद तक सार्वजनिक कर रहे हैं। कभी-कभा लगता है कि लोग खुद का परिचय देने से भी डरते हैं। जब आप वर्चुअल वर्ल्ड का हिस्सा बने हैं, तो खुद को पाक साफ यानी असली परिचय के साथ प्रस्तुत करना ज्यादा उचित है। एक बात और यहां पर जब स्त्रीगण अपनी उम्र के आगे वर्ष अंकित नहीं करतीं, तो और भी ताज्जुब होता है। कब तक ये दकियानुसी परंपरा यानी उम्र छिपाने की कवायद जारी रहेगी। आप कुछ न बताएं, आपका चेहरा तो सबकुछ बता ही देता है। फेसबुक संस्कार भी गढ़ रहा है और भाषा को बेहतर बनाने को प्रेरित भी करता है। कम से कम अंगरेजी तो हम जैसे हिन्दी टिपियाउकारों का बेहतर बना ही रहा है। अंग्रेजी दां लोगों की चिल्लपों के बीच खुद को काबिल बताने के लिए हम भी इसी बहाने अंग्रेजी में टिपिया देते हैं। संपर्कों की दुनिया के इस निराले खेल ने कई लाभ दिये हैं, तो परेशानियां भी दी हैं। सुना है कि कानूनी हिसाब से भी इन सोशल साइटों पर दी गयी जानकारी आपके जीवन की हर पहलू के प्रमाण की तरह मानी जायेंगी। सवाल
वही है कि फेसबुक जैसी साइट पर आप फरजी आइडेंटीटी बनाकर किसे बेवकूफ बना रहे हैं। खुद को या हमें। क्योंकि आपकी हर कवायद, आपकी हर प्रतिक्रिया आपके स्तर को बयां कर जाती है। अगर आप चिरकुट हैं, तो चिरकुटई के लक्षण भी दिखने लगते हैं। अगर बौद्धिक हैं, तो बुद्धिमता भी और अगर अन्य कोई दूसरे शौक रखते हैं, तो वे भी एक हद तक नजर आते हैं।

Tuesday, February 16, 2010

फैशन के तौर पर दोस्त बनाये रखने से क्या फायदा



मोबाइल पर मैसेज भेजकर एक साथ सैकड़ों लोगों को पीआर स्ट्रांग करने की तैयारी कर रहा हूं। होली में, दीवाली में, एक साथ पहले इतने लोगों को विश नहीं कर पाता था, लेकिन अब उंगलियों के सहारे बटन दबाकर मैसेज टिपिया कर भेज देता हूं। मेरी बातें, मेरी जिंदगी फास्ट हो गयी हैं। फास्ट ट्रैक पर सरपट दौड़ रही है। उनके बीच करीब रहनेवाला दोस्त यूं ही कभी मिल भी जाता है, तो घर नहीं आता। क्योंकि उसकी लाइफ बिजी है। अब जीमेल पर ही बज पर ही कमेंटों का दौर भी हो जाता है।

कुछ ऐसे ही तकनीकी दौर के शिखर पर खड़े होकर हम संबंधों की नयी रचना करने की कोशिश करते हैं। एक दिल की बात कहना चाहता हूं कि फेसबुक पर हमारे ६५० से ज्यादा दोस्त हो गए। उसमें से कुछ नामचीन लोग भी हैं। उन्हीं में से एक को मैंने चैट बॉक्स से पोक करके बात करने की कोशिश की, शायद कुछ बात हो। लेकिन उनके पास समय नहीं था। वैसे ६५० दोस्तों में से कई अब तक अनजान हैं। सिर्फ उनके चेहरे दिखते हैं। क्या ऐसे अनजान लोगों को दोस्त बनाये रखना जरूरी है? सोचता हूं कि जो बच गए रिश्ते या दोस्ती है, उन्हें ही निभाता चलूं। ये सोशल नेटवर्किंग साइट पर अगर एक हजार दोस्त भी बन जाएं और टि्वटर पर दो हजार फॉलोवर भी और उनके हमारे साथ किसी प्रकार का संवाद नहीं हो, तो फैशन के तौर पर उन्हें दोस्त बनाये रखने से क्या फायदा

पहले दोस्त बनाने से पहले सोचता नहीं था। लेकिन अब ये सोचता हूं कि ये एक बकवास काम है। यहां बकवास इसलिए कि इसमें भी अपना स्वार्थ है कि हमारी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। जबर्दस्ती संबंधों को ढोए जाने से बेहतर है कि उन संबंधों को तोड़ दिया जाए। जब हम रिश्ते नहीं बनाये रख सकते, जब संवाद ही नहीं हो पाते, तो फिर इन्हें ढोया क्यों जाए? 


हमारे पड़ोस में, हमारे दोस्तों में एकल परिवार की अवधारणा शायद इन्हीं कारणों से सफल हो रही है। जब रिश्ते नहीं कायम रह सकते, तो उन्हें तोड़ देना ही बेहतर है। सबसे बड़ी चीज खुशी है। जब व्यक्तिगत स्तर पर अहं को संतुष्टि मिले और संवादों का एक प्रवाह कायम हो, तभी जीवन की सार्थकता है। सीधे शब्दों में कहें, तो फेसबुक अब एक पागलपन की तरह लगता है, जब टिपिया तो आते हैं, लेकिन वहां जो संवाद होता है, वह सिर्फ उच्च मानसिक स्तर या आदर्शों का बोध कराता है, जो जाहिर तौर पर असलियत का उलटा रूप होता है। हम जो नहीं होते, उसे वहां दिखाने जाते हैं। व्यावहारिक स्तर पर भी उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि समस्या के हल के लिए जमीनी स्तर पर कोई कार्य भी नहीं होता।

सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें लिख देने और उन पर टिप्पणियों के लालच में हम जो समय गुजार देते हैं, उसका इस्तेमाल किताबों और पत्रिकाओं में लगाया जाए।

नहीं चाहिए ऐसी दोस्ती
जहां न मिले कोई झप्पी
न मिले कोई शाबासी
और न मिले दिल को दुखानेवाले दो-चार शब्द
बस नमस्ते-नमस्कार करके
एटिकेट-आदर्शोंवाले दायरे में 
बंधकर, नहीं मार सकता 
खुद को
मुझे जीना है लंबा
बेहतर रिश्तों के साथ
भले ही दो-चार हों
लेकिन वे दिलवाले हों 
और उनमें हो, एक अपनापन
नहीं चाहिए ऐसी दोस्ती
जहां न मिले कोई झप्पी
न मिले कोई शाबासी


हमने तो फेसबुक पर अपने स्टेटस में कमेंट भी डाला कि फेसबुक के दोस्तों, बड़ी बातें तो कर लेते हो, लेकिन क्या दिन में दो घंटे भी अपने करीबी लोगों के लिए निकालते हो क्या?

ये एक ऐसा सवाल है, जो कि रह-रहकर मेरे मन में कौंधता है और तीर की तरह मन में चुभता है। ये एक ऐसा सवाल है, जो इंटरनेट प्रेमी हर शख्स के सामने सवालों का दौर खड़ा करेगा।

Thursday, August 20, 2009

सचमुच तुम सबसे अलग हो विरती

फेसबुक पर विरती जनक वघानी हमारी दोस्त हैं। उम्र कोई छह वर्ष के आसपास होगी। शुरू में ये नहीं पता था कि हम जिस विरती से बात कर रहे हैं, वह कलर्स चैनल पर रहे कृष्णा सीरियल में राधा की भूमिका निभा रही है। सुखद आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई। आज बतौर बाल कलाकार और मॉडल विरती की अलग पहचान है। आज के दौर में ये एक उपलब्धि ही मानी जानी चाहिए।

हमने उन्हें अपना परिचय भेजने को कहा, तो उन्होंने अपने कुछ बेहतरीन फोटो हमारे लिये भेजे। यहां ये बता दें कि विरती ने इसके अलावा टीवीसी, रेमंड गारमेंट, मेट लाइफ इंश्योरेंस, डरमी कूल पाउडर, आडोमॉस ट्यूब, आमिर खान के साथ पारले मोनेको, पांड्स क्रीम,कॉलगेट टूथपेस्ट. रिलायंस म्यूचुअल फंड, रिलायंस बिग टीवी आदि के एडवर्टाइजमेंट में काम किया है।


विरती के कुछ बेहतरीन फोटो














Saturday, August 1, 2009

दोस्ती का दिन ब्लागर बंधुओं को मुबारक हो।

आज फ्रेंडशिप डे है। आप बेचैन हैं कि अब तक किसी ने आपको फोन या शुभकामना संदेश नहीं भेजा है। अंगरेज और कुछ करें करें, हर चीज का एक दिन जरूर बना दिया है। १४ फरवरी को प्रेम दिवस का रूप दे दिया है, तो दो अगस्त को आज फ्रेंडशिप डे है। दोस्ती, प्रेम, माता-पिता के प्रतिसिमट कर रह गया है। लेकिन एक सवाल है कि अगर दोस्त ही दुश्मन निकल जाये, तो क्या करियेगा।

चाणक्य नीति में तो यहां तक कहा गया है कि अपनी गोपनीय से गोपनीय बातों को दोस्तों और निकट के व्यक्ति से बचाकर रखो। पता नहीं, कब कौन आपका दुश्मन बन जाये।

प्रतियोगिता के इस युग में कभी भी कहीं भी कुछ हो सकता है। सुदामा तो कृष्ण के साथी थे। गरीब थे। लेकिन कृष्ण ने उन्हें अपने से भी ज्यादा सम्मान दिया। आज तो सुदामा हैं और कृष्ण। दोस्ती का भी आधुनिक रूप फेसबुक पर है। लोग अब मिलते नहीं, लेकिन फेसबुक या कहें सोशल नेटवर्किंग के सहारे एक-दूसरे से जुड़े हैं। कई लोग दावा करते हैं कि हम फेसबुक पर दोस्त हैं। लेकिन सच्चा दोस्त, तो वही है, जो संकट में, अंतिम समय में काम आये और राह दिखाये।
दोस्ती पर बनी फिल्मों ने कई हिट दी हैं। तेरी-मेरी यारी, ये दोस्ती हमारी, ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे... जैसे गीत लबों पर आकर गुनगुनाने लगते हैं हम आज भी। दोस्ती और फ्रेंडशिप को बेहतर नजरिया दे सकें, तो हमारा जीवन सफल हो।
जो भी हो, यहां पर इससे अलग एक ही चीज कहना चाहेंगे
दोस्ती का दिन ब्लागर बंधुओं को मुबारक हो।

Saturday, July 11, 2009

फेसबुक तुम्हें हमारी दोस्ती का सलाम।


एक सवाल फेसबुक को लेकर उठा। फेसबुक यानी सोशल नेटवर्किंग साइट, जिसकी जादू से हम क्या, बड़े-बडे़ नहीं बच पाए। एक बात बताइए, क्या हम सिर्फ उन्हीं अतीत के लोगों को अपने दायरे में रखेंगे या बातचीत के लिए चुनेंगे, जो हमारे संपर्क में रहे या हैं। सवाल ये है कि आपका नजरिया क्या है? जब सोशल नेटवर्किंग साइट का आप उपयोग करते हैं, तो अनायास ही आप सैकड़ों लोगों से जुड़ते चले जाते हैं। ये एक नहीं रुकनेवाला क्रम है।

सबसे बड़ी बात है कि दोस्ती के मर्म को समझना कठिन है। निजी जिंदगी में दोस्त हमेशा सुख-दुख की भावना का ख्याल रखते हैं। वैसे में फेसबुक पर जो दोस्त बने हैं, उनसे वैसी ही भावना की अपेक्षा करना क्या उचित है? मैं तो हर उस दोस्ती के आग्रह को स्वीकार करता हूं, जो मेरे पास आता है। मेरा मानना है कि अगर कोई मेरे लिए बुरा है, तो मैं क्यों दूसरों के लिए बुरा होऊं। मैं न तो त्याग की अपेक्षा करता हूं और न ये सोचता हूं कि अगला फेसबुक का दोस्त मेरे हर सवाल का जवाब देगा। अपने स्टेटस पर जवाब पाने या किसी संदेश के जवाब के लिए जबरदस्ती नहीं की जा सकती। अगर किसी ने दोस्त बनने के लिए निमंत्रण दिया है, तो हमें उसे स्वीकार करना चाहिए, ये हमारा दायित्व और फर्ज भी है।

वैसे भी निजी जिंदगी में कम ही मिलना हो पाता है, वैसे में अगर आधे-एक घंटे में किन्हीं दो-चार व्यक्तियों के साथ मन की बातें शेयर कर लीं, तो कौन सी खराब बात हो जाती है? राह चलते किसी व्यक्ति को बुलाकर मित्र बनाने का चलन तो नहीं है। लेकिन अगर आप मित्र बनाना चाहें, तो भी वह आपके स्टेटस को देखकर मित्र बनेगा। ऐसे में फेसबुक पर लोग सिर्फ एक सहज आकर्षण में बंधकर अगर मित्र बन जाते हैं, तो बुरा क्या है।

मेरे मित्रों की संख्या दो सौ पार चली गयी है, इच्छा है और बढ़े। कम से कम मेरे नाम से इतने लोग परिचित तो हैं। कौन जानता है कि जिंदगी के किस मोड़ पर कब कौन किस परिस्थिति में कहीं मिल जाए। एक संवेदनशील इंसान होने के नाते मुझे फेसबुक आकर्षित करता है। दो लाइन की उसकी स्टेटस में वो दम होता है, जो हजारों शब्दों में नहीं। आपकी सोच को सिर्फ एक तीर से मित्र बनें सैकड़ों लोगों के सामने परोसा जा सकता है। अपने मन की भड़ास को बिना गरियाए चुपचाप स्टेटस में डाल आप चुप बैठ सकते हैं। साथ ही दोस्तों की प्रतिक्रिया भी जान सकते हैं। कम से कम आपका नजरिया लोगों के विचारों को जानकर विस्तृत होता है।

सबसे जरूरी चीज संवाद करना है। जितना संवाद करिएगा, आपका दायरा और सीमा क्षेत्र उतना फैलेगा। इसलिए अपने संवाद के दायरे को विस्तृत होने दीजिए। मेरे जितने भी मित्र बने हैं, मुझे किसी से कोई गिला शिकवा नहीं है। सबसे बड़ी बात ये है कि किसी ने कम से कम मित्रता के प्रस्ताव को तो स्वीकारा। जहां रिश्तों का अंधेरा हो और रिश्ते मर रहे हों, वहां एक छोटे से दीए का जलना भी सुकून दे जाता है। फेसबुक तुम्हें हमारी दोस्ती का सलाम।
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