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Wednesday, May 5, 2010

माफ कीजिएगा, मैं ब्लाग जगत और तथाकथित बौद्धिक जनों की झूठी दलीलों से ऊब गया हूं....

माफ कीजिएगा, मैं ब्लाग जगत और तथाकथित बौद्धिक जनों की झूठी दलीलों से ऊब गया हूं। स्त्री विमर्श, नारी स्वतंत्रता और अधिकार के कोणों से निरूपमा की मौत पर हो रहे सवालों से झुंझलाहट होती है। निरूपमा के लिए हजारों आवाजें बुलंद हो रही हैं। ये महज टीआरपी बढ़ाने का फार्मूला है।  यहां हमारा मकसद आनर किलिंग के मुद्दे पर बहस करने का नहीं है, बल्कि निरूपमा के मां बनने की स्थिति तक पहुंचने और उसके बाद उसके जीवन में आये परिवर्तनों को लेकर है। 

कोई भी घटना या परिणाम किसी प्रक्रिया का हिस्साभर होता है चाहे वह गलत हो या सही। सवाल ये है कि निरूपमा की जिंदगी में जो कुछ हो रहा था या हुआ, वह सही था या गलत। हम ये कहना चाहेंगे, आप क्रांतिकारी बातें करते हुए स्त्री स्वतंत्रता, लिव इन रिलेशनशिप और निरूपमा द्वारा उठाये गये सही या गलत कदम पर बहस करते हुए जो मुगालता पाल रहे हैं, वह इसलिए है कि आपको एक ऐसा परिवेश मिला, जहां सुरक्षित जीवन था, मां-बाप हैं और जीवनयापन के लिए नौकरी है। पश्चिम जगत की तरह सहजीवन की कल्पना अगर यहां सही रूप में साकार होने लगे और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की हामी भरनेवालों की चांदी हो जाये, तो अराजक स्थिति को संभालने के लिए कौन पहल करेगा, ये सोचिये। निरूपमा चली गयी, लेकिन वह अपने कई अनसुलझे सवालें छोड़ गयी है। जब रेडियो या टीवी पर कंडोम का खुलेआम प्रचार हो रहा हो और बहत्तर घंटे में गर्भ में उपजनेवाले जीवन को मारने की दवा सुझायी जा रही हो, तो सेक्स के मामले में दिमागी तौर पर फ्री होना स्वाभाविक है। रिपोर्ट पढ़िये, मन नहीं अकुला जाये, तो बोलियेगा। बाहर गये बेटे-बेटियों की स्थिति को लेकर शिकन न उभरे तो कहियेगा। 

सिर्फ बौद्धिक जमात में खुद को शामिल करने के लिए ये दलील दी जाती है कि बिना शादी के सहवास और उसके ऊपर तीन माह तक गर्भ धारण करने की बात एक हिम्मतवाली लड़की ही कर सकती है। मैं इसे हिम्मत नहीं, मजबूरी मानता हूं। एक गलती मानता हूं। जब आप जानते हैं कि आपके एक गलत कदम से क्या दुष्परिणाम सामने आयेंगे, तब भी आप कोई सावधानी नहीं बरतते हैं। दिल्ली जैसा शहर कितना भी आधुनिक हो जाये, लेकिन कोई भी मानस बिन ब्याही मां की बेबसी को स्वीकार करने की हिम्मत कम ही जुटा सकता है। युवा जोड़ों को पार्कों में उन्मुक्त अवस्था में आप-हम खुलेआम देख सकते हैं। स्वतंत्रता की बातें करनेवाले कभी भी एक अनुशासन की बातें क्यों नहीं करते। निरूपमा के पिता सनातम धर्म की दुहाई देकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने की गलती जरूर की है, लेकिन सवाल ये है कि माता-पिता द्वारा दी गयी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और भरोसे का क्या किया जाये।

भविष्य में अगर मेरी संतान किसी से अपने मन से विवाह की इच्छा जताये, तो जरूर राजी होऊंगा, लेकिन एक भरोसा ये जरूर चाहूंगा कि वह अपने अस्तित्व और प्रतिष्ठा से खिलवाड़ न करे। हर कोई अपनी संतान के लिए सुरक्षित जीवन चाहता है। मान लिजिये कि परिवार में मात्र तीन सदस्य हों और एक की मनोदशा बिगड़ जाये, साथ ही दोनों के पास समय की कमी हो, तो ये स्वतंत्रता की दुहाई देनेवाली बौद्धिक जमात क्या कभी आगे बढ़कर संभालने का आयेगी। बौद्धिक गुटरगूं से ऊपर उठिये। सोचिये और तब उगलिये। 

निरूपमा के पिता की सोच जरूर संकीर्ण है, लेकिन हमें भी स्त्री आजादी के विमर्श के बहाने अपनी संकीर्ण सोच से ऊपर उठना जरूरी है। ऐसा न हो कि विवाह नाम की संस्था ही खत्म हो जाये और बिन ब्याही माताओं की फौज खड़ी हो जाये। निरूपमा के तथाकथित मित्र 
द्वारा विवाह जैसी व्यवस्था के लिए पहल में देरी करना उसी गैर-जिम्मेवार रवैये का परिणाम है, जो कि आज की युवा पीढ़ी लगातार तथाकथित फरजी बौद्धिक जमात से ग्रहण कर रही है। अब जो समाज बन रहा है, वहां आजादी है, सोशल नेटवर्किंग है और मोबाइल है। ऐसे में तेज भागती जिंदगी में भी कई भटकाव हैं। आज के युवा जिंदगी के अनुभवों से पूर्व उन भटकावों से संभल नहीं पा रहे। 

रांची जैसे शहर में प्रेम के नाम पर जिंदगी को दांव पर लगाने की घटना आम होती जा रही है। वैसे भी लड़की, आप मानिये या मानिये, सबसे खतरनाक स्थिति में होती है। शरीर के नाम पर उसका जीवन ही दांव पर लगा रहता है। इसलिए संभलना स्त्री को ही पड़ेगा। पुरुष के लिए जिंदगी में उतना परिवर्तन मायने नहीं रखता, क्योंकि उसके शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। इसलिए स्त्री विमर्श के बहाने घटिया बौद्धिक जुगाली से ऊपर उठिये।

Tuesday, March 2, 2010

अच्छा ताजा और बासी सौंदर्य क्या होता है?

हमने एक सवाल उठाया कि क्या किसी पोस्ट पर विषय से अलग हटकर महिला की तस्वीर लगाना उचित है। उसमें एक कमेंट्स आया। 


आपको सुन्दरता से एलर्जी क्यों है ?क्या ताजगी भरा सौदर्य है!
मन प्रफुल्लित हो गया -हाँ आपका यह कहना ठीक है कि विषय के साथ उसका कोई तारतम्य नहीं पर विश्यास्कती के साथ तो है मेरे भायी 

फिर रचना जी का कमेंट आया

maansik rogi bahut hae samaj mae jo kewal duartaa kae bhawarae maatr haen unko vishy sae nahin vastu sae { kyuki unki nazar mae naari kaa saundarya vastu maatr haen } pyar haen


अब हम असमंजस में हैं कि बासी और ताजा सौंदर्य क्या होता है? सुंदरता किसे अच्छी नहीं लगती। लेकिन एक नजरिया होना चाहिए। कोई स्त्री कितनी भी सुंदर हो, लेकिन व्यवहार उचित और संयम भरा नहीं हो, तो सुंदरता के क्या मायने? अब सवाल ये उठता है कि ताजा सौंदर्य क्या होता है? ताजा सौंदर्य की परिभाषा क्या है? हम आज तक ताजा सौंदर्य का मतलब नहीं समझ पाये। यहां ताजा शब्द के इस्तेमाल पर जोर है।
सब्जी ताजी हो सकती है। ताजी भात या दाल हो सकती है, जो तुरंत बनी हो, लेकिन क्या सुंदरता, वह भी स्त्री की सुंदरता ताजी हो सकती है। 


बड़ी मुश्किल है। हमें लगता है कि हम किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये। यहां  कठिन हिन्दी शब्द का प्रयोग कर दिया, क्योंकि इसे समझने के लिए भी सामान्य व्यक्तियों को शब्दकोष का सहारा लेना पड़ेगा। मुझे अब उस शब्दकोष की तलाश है, जिसमें इस ताजी या बासी की पूरी बारीक जानकारी हो। 


जहां तक हमें लगता है, तो ये मनुष्य के लालन-पालन और उसके वातावरण पर निर्भर करता है कि वे किसी चीज, वस्तु या किसी महिला को भी कैसे देखते हैं। यहां विचारों के महासमुद्र में दैहिक सुंदरता का क्या मतलब है? क्या हम अगर किसी वृद्धा की तस्वीर होगी, तो उसे नापसंदगी के दायरे में लायेंगे। सीधे तौर पर मन शर्म से पानी-पानी हो रहा है। 


मुझे अपनी भारतीय संस्कृति की वह परिभाषा याद है, जहां नारी को पूजनीय कहा गया है। नारी शक्ति है और इसके पीछे के अर्थ को समझने से पहले अपने नजरिये को ठीक करना होगा। बड़ी-बड़ी बातें करना अपनी जगह है, लेकिन उसे व्यावहारिक रूप से अमल में लाना अपनी जगह। हमें लगता है कि हम कम से कम इस ब्लाग जगत को गलत अवधारणा से मुक्त करें।

Saturday, August 1, 2009

दोस्ती का दिन ब्लागर बंधुओं को मुबारक हो।

आज फ्रेंडशिप डे है। आप बेचैन हैं कि अब तक किसी ने आपको फोन या शुभकामना संदेश नहीं भेजा है। अंगरेज और कुछ करें करें, हर चीज का एक दिन जरूर बना दिया है। १४ फरवरी को प्रेम दिवस का रूप दे दिया है, तो दो अगस्त को आज फ्रेंडशिप डे है। दोस्ती, प्रेम, माता-पिता के प्रतिसिमट कर रह गया है। लेकिन एक सवाल है कि अगर दोस्त ही दुश्मन निकल जाये, तो क्या करियेगा।

चाणक्य नीति में तो यहां तक कहा गया है कि अपनी गोपनीय से गोपनीय बातों को दोस्तों और निकट के व्यक्ति से बचाकर रखो। पता नहीं, कब कौन आपका दुश्मन बन जाये।

प्रतियोगिता के इस युग में कभी भी कहीं भी कुछ हो सकता है। सुदामा तो कृष्ण के साथी थे। गरीब थे। लेकिन कृष्ण ने उन्हें अपने से भी ज्यादा सम्मान दिया। आज तो सुदामा हैं और कृष्ण। दोस्ती का भी आधुनिक रूप फेसबुक पर है। लोग अब मिलते नहीं, लेकिन फेसबुक या कहें सोशल नेटवर्किंग के सहारे एक-दूसरे से जुड़े हैं। कई लोग दावा करते हैं कि हम फेसबुक पर दोस्त हैं। लेकिन सच्चा दोस्त, तो वही है, जो संकट में, अंतिम समय में काम आये और राह दिखाये।
दोस्ती पर बनी फिल्मों ने कई हिट दी हैं। तेरी-मेरी यारी, ये दोस्ती हमारी, ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे... जैसे गीत लबों पर आकर गुनगुनाने लगते हैं हम आज भी। दोस्ती और फ्रेंडशिप को बेहतर नजरिया दे सकें, तो हमारा जीवन सफल हो।
जो भी हो, यहां पर इससे अलग एक ही चीज कहना चाहेंगे
दोस्ती का दिन ब्लागर बंधुओं को मुबारक हो।
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