इन दिनों इतनी गरमी पड़ रही है कि बाहर धूप में निकलने को मन नहीं कर रहा। रांची जैसे शहर में इतनी गरमी उफ्फ। मैं गरमी पर ये दूसरी पोस्ट लगातार लिख रहा हूं। ये पोस्ट इसलिए जरूरी है कि अब लोगों को ये कम से कम ख्याल आये कि हमें पेड़ों को लगाना चाहिए। आज मैं आदर्शवाद या किसी नीति-सिद्धांति की बातें यहां नहीं करूंगा। ये बेकार की बात है। हमारी केंद्र सरकार ने अब तक जीवन के सबसे जरूरी तत्व पानी के लिए कोई समग्र नीति नहीं बनायी है। गंगा में कम होते पानी या तालाबों और नदियों की मिटती श्रृंखला सरकार की नींद नहीं हराम करती। हमारे यहां रांची में बचे तालाबों का राम नाम सत्य है, हो गया है। ये तो चिरकुटई की हद है कि पूरा प्रदेश पानी के लिए हाहाकार कर रहा है और यहां कोई पहल करनेवाला नहीं है। अपार्टमेंट बनानेवाले बोरिंग के नाम धरती की छाती को छेदकर पानी निकाल रहे हैं। पानी जमा करने के लिए कोई तरीका नहीं अपनाया जा रहा। आज के हालात भविष्य के लिए ऐसे डरावना भविष्य का निर्माण कर रहे हैं, जहां पानी के नाम पर जिंदगी दांव पर लगानी पड़ेगी। हम ऐसे क्यों गैर जिम्मेवार हो रहे हैं? यहां बाघ बचाने के नाम पर ऐसी नौटंकी है कि ब्लागियानेवाले भी उसके जाल में आ गये। कहते हैं बाघ बचाओ, मैं कहता हूं कि पेड़ लगाओ। अपनी खुद की धरती और अपने खुद के वातावरण से ऐसा मजाक ठीक नहीं लगता। मैं तो कहता हूं कि हम सब ये जिम्मेदारी निभाने का फरजी रोल निभा रहे हैं, उससे बाहर निकलें और कुछ करें। आप एक पेड़ जरूर लगाएं, नहीं तो पेड़ काटने से रोकें। कम से कम पानी के संग्रह के लिए जरूर सोचें। ये एक मानवीय अपील है। सुबह के आठ बजे ही १२ बजने का आभास होने लगता है। धरती तपने लगती है और आसमान चिढ़ाने लगता है। अपने जीवन पर इस मनहुसियत को ज्यादा दिन तक नहीं ओढ़ने दें। हमें बदलाव लाना है, चाहे जैसे भी हो। पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ।
(ये एक अपील है..... जिससे हम सबका फायदा होगा)
Tuesday, April 13, 2010
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7 comments:
aapki baat se sahmat hun aur palan bhi karunga...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
सार्थक संदेशा...देर हो चुकी है...जल्दी करें. एक विशाल अभियान चलाना होगा.
आओ, प्रण लें-हम अपने जन्म दिवस एवं परिवार के हर व्यक्ति के जन्म दिवस पर एक पेड़ लगायें और उसे पालें.
इससे बड़ा उपहार आपके जन्म दिवस पर और कोई हो ही नहीं सकता.
प्रभात जी ,
मुझे लगता है कि अभी भी लोगों और सरकार ने स्थिति की गंभीरता को ठीक ठीक नहीं भांपा है इसलिए सब उसे उपेक्षित किए बैठे हैं । वो तो शुक्र है ग्रामीण क्षेत्रों का कि जिनकी वजह से थोडी बहुत हरियाली बची हुई है , अन्यथा देश को रेगिस्तान बनने से रोका नहीं जा सकता था । शहरों में तो ये कार्य सिर्फ़ सरकार ही कर सकती है व्यापक पैमाने पर , हां लोगबाग अपने आसपास के पार्कों में जरूर लगा सकते हैं जो लगाने चाहिए उन्हें
सच बात है ।
सही बात! एक पेंड़ न काटना एक पेंड़ लगाने बराबर है। या शायद ज्यादा!
बच्चे पैदा कम करो, पेड़ लगाओ ज्यादा..
अन्यथा देश में आदमी आदमी को खायेगा..
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