Saturday, April 17, 2010
शायद कल रफ्तार तेज हो जाये...
कभी-कभी लगता है, जैसे कुछ काम नहीं होगा। लगता है, जैसे अपने बस में कुछ नहीं। सुनते हैं कि बर्नआउट वाले स्टेज में ऐसा होता है। क्या हमने ऐसा कर लिया है क्या? इतना काम कर लिया है? या हमारे पास टॉपिक या यूं कहें मुद्दों की भरमार नहीं है। मैं अब सानिया मिर्जा एपिसोड या आइपीएल विवाद पर नहीं लिखना चाहता। क्या लिखें कि हम पब्लिक लोग इतने बेवकूफ हैं कि इस खेल को नहीं समझ सकते। ये पैसा, ये बाजार, ये दुनिया, ये संसार सारा कुछ एक वहम है। यही बात बार-बार मन में आती है। पिछले तीन-चार दिनों से उंगलियों टिपियाने को नहीं उठती। सही में कहूं, तो जब आज लिखने की इच्छा हुई, तो यही लिखा कि कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा। अब तो ब्लागियाने का टेंशन पता नहीं जाता रहा। उसमें वह आकर्षण भी नहीं रहा शायद। सारा कुछ उलट-पुलट लगता है। धूप में निकलो तो खोपड़ी जलने लगती है। छाता लेकर निकलनेवाले लोग चिढ़ाते हैं। छाया को अपना साथी बनाये चलते हैं। जिंदगी में आ रहे बदलावों के साथ हमारे इस ब्लागियाने की रफ्तार में भी थोड़ी कमी आयी है। सारा कुछ धीरे-धीरे बदल रहा है। मैं ज्यादा टेंशन नहीं लेना चाहता। फेसबुक पर भी स्टेटस में लिखा-सबकुछ स्लो-स्लो है। शायद कल रफ्तार तेज हो जाये....
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2 comments:
अच्छा है..
तेज या धीमा, अपनी शर्तों पर चलें।
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