Wednesday, April 21, 2010
उफ्फ ये कुकुर प्रजाति के सदस्य, न जीने देंगे, न मरने
रात में आफिस से निकलते वक्त हमारा सामना तीन चीजों से होता है, रात के अंधेरे से, खुद से और कुकुर झुंड से। दिनभर कुकर बिरादरी के सदस्यों को यहां-वहां मुंह मारते देखियेगा, लेकिन रात में उनकी मीटिंग और एकता देखकर आप दांतो तले उंगलियां दबा लेंगे। स्कूटर स्टार्ट करते ही हनुमान चालीसा पाठ मन में शुरू हो जाता है। रास्ते में कुकुर सदस्यों के संभावित एटैक से खुद को बचाने के लिए हम मुस्तैद रहते हैं। ऐसा लगता है कि इधर के सालों में कुकुर प्रजाति के सदस्यों की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है। हमारे स्कूटर से पता नहीं उनकी क्या दुश्मनी है, आक्रमण ऐसा करते हैं, मानो हमें स्कूटर समेत चबा जाएंगे। ऐसा क्रम पिछले सात साल से चल रहा है। एक बार तो एक कुकुर महोदय के पहिये के नीचे आने के बाद यमराज जी के पास टिकट कटने से बचा। सरकार के साथ कुकुर प्रजाति का लगता है, जैसे कोई समझौता चल रहा है, इसलिए वे उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जाता। हर गली-चौराहे पर कुकुर प्रजाति के सदस्य मुस्तैद नजर आते हैं। ऐसी मुस्तैदी हमारे पुलिस प्रशासन में आये, तो क्या मजाल कोई कुछ कर ले। कुकुर प्रजाति के सदस्यों के द्वारा काटने के बाद एंटी रेबिज सुई के लिए लंबा चक्कर लगाना पड़ता है। लेकिन यहां के अस्पतालों में वे भी कम हैं। अपने करियर गाथा में रात की यादों में कुकुर प्रजाति के सदस्य हमराही बने रहेंगे। उनके पैने दांत और उनकी फुर्ती इतना डरा जाती है कि निंदवा दूर चला जाता है। वह तो फेसबुक महाराज की माया है कि तनाव छूमंतर हो जाता है और टिपिया कर पोस्ट लिखकर सोने चले जाते हैं। देखते हैं, ये संघर्ष कितना दिन चलता है।
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6 comments:
"ऐसी मुस्तैदी हमारे पुलिस प्रशासन में आये, तो क्या मजाल कोई कुछ कर ले।"
सही कहा है.
कुत्ते की तुलना आदमी से मत कर दीजियेगा काट लेगा. कौन? आदमी, नहीं कुत्ता.
ये कुकर भी न..एक बार पहचान भर जायें. :)
प्रभात जी....
बहुत बढ़िया...लिखे हैं... एक दम मन की व्यथा... हालांकि ! कुत्ते मुझे अपना भाई बंधू ही समझते हैं.... क्यूंकि मैं कुत्तों से बहुत प्यार करता हूँ..... पर यह जो सड़क के कुत्ते हैं ना...यह मुझे अपना दुश्मन समझते हैं... अब हर कुत्ते को तो नहीं पाल सकता ना... कितनी बार इन लोगों को समझाया है....लेकिन यह लोग मेरी कार को ही दौड़ा लेते हैं... और जब बाइक पर रहता हूँ तो दोनों टांगें .... आगे जो स्टील का सपोर्टर लगा रहता है उस पर चढ़ा लेता हूँ.... फिर सब दूर तक छोड़ कर आते हैं.... जैसे लोग अपने मोहल्ले से नगर निगम के कूड़े वाले ट्रक को छोड़ कर आते हैं.....
बहुत ही बढ़िया लगी आपकी पोस्ट.... मज़ा आ गया.....
वर्षों पहले सुबह सुबह फुटबाल खेलने जाते थे । रोज साथ साथ लगभग 40 मीटर तक गुर्राते हुये चलते थे 5 कुकुर । हर दिन और निकट । जब धैर्य न रहा तो एक गोल किक जड़ दिये सरदार को । तब से हमको सरदार मान बैठे हैं सब । आते ही आदर समेत पूँछ हिलाने लगते हैं ।
मेरे अनुभव में यदि आप भागेंगे तो वो आपको भगाएंगे, और अगर आप एक बार रुक गए तो चले जायेंगे, यहाँ के कुत्ते तो ऐसे ही हैं
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