मॉनसून यानी बरसात का आगमन. बरसते मेघों को आतुर होता मन. मन चंचल हो जाता है. हम बरसात के आने का इंतजार करते रहते हैं. सही में कहें, तो इस बार बिहार और झारखंड जैसे राज्य बरसात के लिए तरस रहे हैं. सूखे के प्रकोप का डर सता रहा है. कटते जंगल, उजड़ते पहाड़ पूरी संतुलन प्रणाली को असंतुलित कर रहे हैं. मन डरता है. दो साल पहले जब राजस्थान मे बाढ़ की खबर आयी थी, तो सारे लोग चकित थे.
रेगिस्तान में बाढ़ का आलम. हम आंखें फाड़कर कहर देख रहे थे. लोग कह रहे थे, रेगिस्तान में नदी बह रही है, गजब हो गया. मुंबई में हुई बरसात ने तो गजब ढा दिया. फिल्म तक बन गयी. ऐतिहासिक बरसात था. बरसात में मुंबई के लोग डरने लगे हैं. खबरें आती हैं कि जोरदार बारिश से मुंबई ठहर गयी है. सच में कहें, तो बरसात आज के दौर में सबसे बड़ी खबर है. मानसून आयी, तो ठीक और नहीं आयी, तो गड़बड़ ही गड़बड़.
सारे जगहों पर आम लोग जमीन के अंदर के पानी पर भरोसा रख रहे हैं. लेकिन उसका दोहन भी हो, तो कितना. इसका भी तो अंत है. कई जगहों पर पानी जहरीला होता जा रहा है. मीडिया ये खबरें दिखाता है कि कैसे पानी हर साल समस्या बन रही है, लेकिन ये खबरें नहीं बनाता कि इस संकट को दूर करने के क्या उपाय किए जाए. बरसात का संकट कोई आम संकट नहीं है. ये संकट हम सबके लिये है. जो इस ब्लाग को पढ़ रहे हैं उनके लिए भी और जो नहीं पढ़ रहे हैं, उनके लिए भी. हम सब बरसात की कहानी अलग-अलग सुनते रहे हैं. कोशी की बाढ़ भी बरसात की ही देन थी. फर्क सिर्फ इतना था कि उसमें पानी नेपाल से होकर आता है. बरसात में पहाड़ी नदियां उफनती हैं.
पानी की कोई सीमा नहीं होती. कोई देश नहीं होता. वह जिधर जाए, उधर टहल जाती है. सवाल वही है कि ग्लोबल होती दुनिया में पानी सबके लिए मुद्दा है. सारे लोगों के लिए पानी जरूरी है. इसलिए बरसात को लेकर सिर्फ समस्या नहीं, उसके समाधान पर भी बात करें. सावन के आने पर शिवालयों में शिव को तो पूज रहे हैं, लेकिन गंगा को अनदेखा न कर, उसमें आते पानी के लिए इस धरती को बचाएं. ये वाक्य उपदेशक के तौर पर हो सकते हैं, लेकिन इसमें एक सच्चाई भी है. क्योंकि पानी नहीं, तो हम भी नहीं. सारे लोगों में मैं भी हूं. मीडिया सिर्फ खबर न चलाए, कुछ रास्ता सुझाए. इस निकम्मे हो चुके तंत्र को जगाने का काम करे.
Monday, August 2, 2010
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4 comments:
sahi likha hai........ khabar chalane ke sath hi samadhan ke bhi upay sujhay...
यही तो विडम्बना है,उपाय कोई नहीं सुझाता बस समस्या बता कर इतिश्री कर लेतें हैं ।
सच है, पानी की कोई सीमा नहीं है। जहाँ चाहता है, बरस लेता है।
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
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