Monday, October 4, 2010

हम तर्क करना बंद करें और फिर मासूमियत ओढ़ लें

मेरे हजारों ख्वाब में एक ख्वाब उस देश में रहना भी है, जहां कोई धर्म नहीं होता.जहां इमान नहीं बिकता. जानता हूं कि ये ख्वाब उस सच्चाई से दूर हैं, जो आज की हकीकत है.जब एक बच्चा छोटा होता है, तो वह धर्म के मायने नहीं जानता. बड़ा होते-होते कई धर्मों में फर्क जानने लगता है. हम न चाहते हुए भी धर्मों की लड़ाई में शामिल हो जाते हैं. अल्लाह कहो या भगवान, कहीं किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. ऐसे हजारों उदाहरण पड़े हैं, जहां मुसलिम भाइयों ने तन-मन-धन से हिन्दुओं के त्योहारों को सफल बनाने के लिए सहयोग दिया और देते रहे हैं. कहते हैं कि हम विवेकी हैं. हममें बुद्धि है. लेकिन हम इस बुद्धि का इस्तेमाल खुद को नष्ट करने या समाज को बिगाड़ने में लगाते हैं. धर्मों के  हजारों पन्नों में व्याख्या क्यों न की जाए, लेकिन क्या आदमी के मन की व्याख्या की जा सकती है. क्या आदमी का मन किस धर्म को मानता है , ये बताया जा सकता है. आंखे बंद कर चिंतन करिए, तो पता लगेगा कि आपके मन का सारे धर्मों से अलग एक विशेष धर्म है. उस धर्म में सारी धरती के धर्म समाहित होंगे. दिक्कत तब होती है, जब हर चीज की साइंटिफिकली व्याख्या की जाती है. साइंस को जहां भिड़ा दिया जाता है. बाल की खाल निकालने की कवायद जब चल निकलती है, तो उसी में से कई वाद भी निकल पड़ते हैं. वैसे में ही सब लोग अपने-अपने हिस्से के धर्म लेकर चल निकलते हैं और चिल्लाते रहते हैं. हम तर्क करना बंद करें और फिर मासूमियत ओढ़ लें, तो सारा तनाव ही खत्म हो जायेगा. देखना है कि ये कब होगा.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

समय यही माँग रहा है।

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