परिचित
By Pranav Gopal Jha · Thursday
कभी चिंतित,कभी विचलित,
कहीं सीमित कहीं विस्मित
तेरे नयनों से परिचित,
कभी लालित ,कभी उद्वेलित,
कभी पुलकित कभी कम्पित,
तेरे अधरों से परिचित,
कहीं व्याकुल, कहीं विस्तृत,
कहीं चंचल ,कहीं सशंकित,
तेरे मन से मैं परिचित,
तेरी थिरकन पे हर्षित,
तेरे भावों से शाषित,
तेरी खुशियों पे अर्पित,
मैं तेरा एक परिचित.
3 comments:
बहुत ही बढ़िया है.
सबसे पहले नवरात्रि की अनेको शुभकामनायें ...
भाई प्रणव को मेरी तरफ से बधाई हीं बधाई उनके सुन्दर कविता के लिए..
बहुत अच्छी
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