हमारे जैसे लोग, जो अरुंधति राय को उनके किताब को बुकर प्राइज मिलने को लेकर जानते थे, आज उनके सनकपन लिये बयान के लिए जानते हैं. कुछ बुद्धिजीवी, कुछ विचारक, कुछ ब्लागर और कुछ तथाकथित पत्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अरुंधति का समर्थन करते हैं. हमारे देश में प्रजातंत्र का खुला स्वरूप हर उस बागी तेवर को पसंद करता है, जो इसकी धार को कम करता है. हमारे यहां सीमा पार कर रहे विचारकों का स्वागत किया जाता है. हम उन्हें हीरो बनाने में पीछे नहीं हटते हैं.
अरुंधति के मामले में हमारे यहां की सरकार हो या हमारी मीडिया आलोचना से पीछे हट जाती है. वह आलोचना नहीं कर पाती. सत्ता के केंद्र से चंद किमी की दूरी पर राष्ट्रविरोधी मुद्दों पर सेमिनार किया जाता है, लेकिन उसे कुछ यूं गुजरने दिया जाता है, जैसा सामान्य सभा हो. अरुंधति जब कहती हैं कि आई एम डिसोसिएटिंग माइसेलेफ फ्राम हालो सुपर पावर इंडिया, तब भी उनके खिलाफ कोई नेता बयानबाजी नहीं करते. इलेक्ट्रानिक मीडिया में उनके बयान पर बहस नहीं की जाती. इस पर भी नहीं, जब वे कहती हैं कि कश्मीर को भूख-नंगे हिन्दुस्तान से आजादी मिलनी चाहिए. साफ तौर पर ये मौन खतरनाक है.
अगर कोई इन बातों के खिलाफ आवाज उठाता है, तो उसे संघी तक करार दिया जाता है. किसी भी देश की आजादी उसके अनुशासन पर निर्भर करती है. हम जिस आजाद मुल्क में रहते हैं, उस आजादी को मिले हुए चंद दशक क्या बीत गए, हम अपने ही सिस्टम को गाली देने लगें, ये क्या उचित है. बोले हुए शब्द दिल पर चोट करते हैं. अरुंधति के शब्द अब दिल पर चोट कर रहे हैं. नक्सलिज्म जैसे नासूर को समर्थन देकर और चंद आंदोलनों में शामिल होकर अरुंधति किस समाजसेवा की दुहाई देती हैं, ये सोचने की बात है. अरुंधति ने गरीबी नहीं देखी. उन्होंने करोड़ों गरीबों और बेरोजगारों के रोजगार नहीं मिलने के दर्द को महसूस नहीं किया है. किसी व्यवस्था को तोड़ने या देश को बनाने में सैकड़ों साल लग जाते है. भाईचारगी को कायम रखने में हजारों कुर्बानियां चली जाती हैं. उसी जगह पर अरुंधति जैसे लोग खुद को आंदोलन के नायक बनने की राह पर देश के सामने ऐसी बाधाएं खड़ी करते चले जाते हैं, जिनके सामने हमारा स्वाभिमान तिल-तिल कर मरता है.
अरुंधति को इस देश की मिट्टी ने ही पहचान दी. अब उस देश की मिट्टी के खिलाफ उनके भूखे-नंगे हिन्दुस्तान का नारा एक गाली की तरह है. हम जिस अरुंधति पर चंद साल पहले जो गर्व करते थे, वो गर्व धुल चुका है. वैसे भी सरकार इस बात पर गौर करे कि अरुंधति उस बिंदु को मजबूत कर रही हैं, जिसके नीचे कश्मीर के बागी नेता और नक्सल समर्थक जमा हो रहे हैं. अरुंधति के रूप में उन्हें एक ऐसा ग्लैमर लिया चेहरा भी मिल रहा है, जो उनकी आवाज को ज्यादा मजबूती से सामने रख रहा है. उस चेहरे के पीछे की हकीकत सच्चाई में ज्यादा भयानक है. अरुंधति के बयान को कोई सच्चा भारतीय स्वीकार नहीं करेगा.
Tuesday, October 26, 2010
भूखे-नंगे हिन्दुस्तान का नारा एक गाली की तरह है.
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3 comments:
ये सब ऊपर से आये हैं. मन होता है कि इन सब *ऽ*॑॓ ऽ%*ऽ को .........
samarthan !
kewal kasmiri mudde par...
समझदारी के ये " स्टंटमैन" बौद्धिक अय्याशी के शगलो ओर अपनी उपस्थिति दर्ज करने की छटपटाहट में इस देश को जितना नुकसान पहुंचा रहे है वो अक्षम्य है ....मीडिया में भी कुछ लोग अरुंधति के समर्थन में उभर आये है ......इंटेलिजेंस की डेफिनेशन अब चेंज हो गयी है ....लोग अब वक़्त हालात ओर व्यक्ति को देखकर अपनी प्रतिक्रिया तय करते है ..... न की उसकी बात पर .... सिद्धांत ओर नैतिकताये फटाफट करवटे लेती है ..... इतिहास के पन्ने बिना पलटे तात्कालिक प्रतिक्रियाओ ओर शाब्दिक जुगालियो का एक नया दौर शुरू होगा.....सोचता हूँ हम पाकिस्तान -पाकिस्तान चिल्लाते रहेगे ओर पकिस्तान कश्मीर को चीन को बेच के निकल लेगा
baki naksal mudde par arundhuti ka samrthan hai mera....aapse is mudde par asahmati...
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