Saturday, October 16, 2010

बेटियों को लेकर अब कुछ स्वार्थी हो गया हूं

कन्या पूजन ...
 सोना और सौम्या
बेटियों का जिंदगी में क्या महत्व है, ये उनके जन्म से पहले सिर्फ सुनता था. आज दो बेटियों का पिता होने के बाद से दिनभर का क्रियाकलाप उनके आगे-पीछे ही रहता है. उनका हंसना, उनका बोलना, उनका प्यार से गाल को छूना कुछ जादू सा कर जाता है. अब तो उनके बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता.

सौम्या दौड़ लगाते हुए..
मैं अपनी फूल जैसी बेटियों को एक विशाल अंतरात्मा के साथ बढ़ते देखना चाहता हूं. उनमें न तो प्रतियोगिता के तले दबे होने का अहसास हो और न ही सर्वश्रेष्ठ होने का गुमान. मां दुर्गा के इस नवरात्र में कन्या पूजन के दिन बेटियों को देखकर मन पुलकित हो जाता है.

कल मां दुर्गा के दर्शन के लिए जाते समय ये अहसास हुआ कि हम कभी रात-सीता नहीं बोलते. सीता-राम बोलते हैं. राधे-कृष्ण बोलते हैं-कृष्ण राधा नहीं. बेटियों को पढ़ते और बढ़ते देखना भी सुकून दे जाता है. बेटियों को लेकर अब कुछ स्वार्थी भी हो गया हूं , ऐसा लगता है. दूसरों से ज्यादा बेटियों की फिक्र सताती है. आज-कल बड़ी बेटी अपनी पेंटिग्स से चकित करती है,तो छोटी अपनी हरकतों से. छोटी बेटी जब खुद पानी लाकर देती है, तो एक आत्मिक रिश्ते का अहसास होता है. इन रिश्तों को कोई शब्द नहीं दे सकता.

6 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बेटी का बाप होना भी एक अलग ही अनुभव है. प्यारा सा..

प्रवीण पाण्डेय said...

अभी शब्द नहीं मिलेंगे केवल वात्सल्य का आनन्द मिलेगा।

prabhat gopal said...

AAP LOGO KA SNEH MILTA RAHE..

abhi said...

सर जी, बेटियां होती ही ऐसी हैं, और जैसी सोच आपकी है, वैसी ही सोच सब की हो जाये तो फिर दुनिया थोड़ी सुन्दर दिखेगी :)

सोना और सौम्या को बहुत बहुत प्यार....

Anshu Mali Rastogi said...

आपकी बेटियां बहुत प्यारी हैं। कामना करता हूं वे हमेशा यूंही हंसती-खिलखिलाती रहें। बेटियां हमारे लिए बहुत कुछ हैं।

Unknown said...

होती वो अपनी बाबुल की बिटिया ....
एक दिन है जाती छोर बाबुल की बगिया ..
देखो पर जाते नन्हे पैरों मे पायल व् बिछिया..
होती वो अपनी बाबुल की बिटिया ...

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