ये नया साल आ गया, सारे लोग बधाई दे रहे हैं. हमें भी अच्छा लगता है. सबको बधाई फिर से. पुराने साल के खत्म होने की खुशी कुछ इस तरह रहती है, जैसे कि कोई नई चीज एकदम से हाथ में आ गयी हो. दो शब्दों में कहूं, तो मेरा मन इससे सामंजस्य नहीं बैठा पाता. नयापन हमारी जिंदगी में आ जाता है क्या, ये सोचनेवाली बात है.
नयेपन के नाम पर बेहयाई का नंगा नाच करते लोग कुछ जंचते नहीं. पहले जिन मेट्रो कल्चर को लेकर हायतौबा मचती थी, वो तो अब आपके छोटे शहर को भी संक्रमित कर रही है. बड़ा डर लगता है.
हाल में आईनेक्स्ट अखबार में एक स्टिंग में इस बात का खुलासा हुआ था कि रांची जैसे शहर में कैसे बेशर्मी का नंगा नाच पैसे के बल पर खेला जा रहा था. हम एक बात बेलाग होकर कह सकते हैं कि अब भारतीय समाज सेक्स और कंडोम जैसे शब्दों से ऊपर उठ गया है. जब छोटे-छोटे बच्चे शीला की जवानी पर धड़ल्ले से डांस कर रहे हैं और जहां हर व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से दूरी लगातार बढ़ती जा रही है, वहां पर आवारगी का आनेवाले दिनों में कैसा आलम होगा, ये सोच सकते हैं.
कहने का मतलब यह है कि हम कैसे नयापन ओढ़ रहे हैं. विकास की किस अवधारणा को अमलीजामा पहुंचा रहे हैं.इन्हीं सब परिवर्तन के बीच में कई लोग ऐसे भी हैं, जो चर्चा का विषय बने हुए हैं. ये चर्चा उनके अपने बेहतर काम के लिए है. रांची के रिम्स में बतौर हार्ट स्पेशलिस्ट डा. हेमंत नारायण रे मरीजों की दिन-रात सेवा में लगे हुए हैं. रांची जैसे शहर में, वो भी सरकारी अस्पताल में, बाहर के किसी बेहतर संस्थान से आकर सेवा देना किसी त्याग से कम नहीं है. हड़ताल के दिनों में भी डा. रे की मेहनत हर ओर चर्चा का विषय बनी थी. रांची कालेज अंगरेजी डिपार्टमेंट का उसके एचओडी डा. एसके त्रिपाठी द्वारा खुद के पैसे से उद्धार करना भी आपको चकित कर देगा. जब सरकार से प्रार्थना करते हुए प्रोफेसर साहब थक गए, तो उन्होंने खुद के पैसे से डिपार्टमेंट का कायाकल्प कर दिया. ऐसे ही रांची स्थित चाइल्ड लाइन के एनके ता बेसहारा लोगों के लिए भगवान साबित हो रहे है. और भी कई लोग हैं, जो कि रांची जैसे छोटे शहर में अपनी छाप छोड़ रहे हैं.
हर छोटे शहर में कई लोग समाज में अपने कर्मों से नयापन ला रहे हैं. हमारे अखबारों में कंटेंट के नाम पर जहां सनसनी और हाई प्रोफाइल रिपोर्टिंग को जगह मिल रही है, उसमें ऐसे लोग नजरअंदाज कर दिए जा रहे हैं. लेकिन ऐसे लोग सोसाइटी में नया बदलाव ला रहे हैं. इनके लिए जरूर नया साल नयापन लिये रहता है, क्योंकि इन्होंने खुद के साथ दूसरों की जिंदगी बदल दी है. इस साल इसी कारण मैं नए साल पर खुल कर बधाई नहीं दे पाया. एक दिन की छुट्टी मिली भी तो घर पर सोने में बिता दिया. कौन सा नया साल, किसके लिए नया साल. जिस दिन खुद के दम पर चार लोगों की भी जिंदगी बदल दूंगा, उसी दिन से मेरे लिये नया साल शुरू हो जाएगा.
Tuesday, January 4, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
ये दुनिया गजब की..
नया वर्ष परिवर्तन का एक अवसर है, सबके लिये।
सारथक आलेख के साथ सार्थक संकल्प के लिये बधाई और आशीर्वाद।
सार्थक आलेख..सार्थक संकल्प सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी बातों से एकदम सहमत हूँ...
बहुत बदल गयी है दुनिया...साल की पहली तारीख को मैं और मेरे एक और निकट मित्र इसी मसले पे बात कर रहे था..
Post a Comment