फिल्मों की हीरोइनों को देखकर कई लोगों को नैन मटकाते हुए देखता हूं. हमारे भी होते हैं. लेकिन इसे अब माया मान आगे बढ़ जाता हूं. हमारी जिंदगी की गाड़ी इन्हीं के आसपास भटकती भी रहती है. न जाने कितने उपन्यास लिख डाले गए. कितने कांडों को इसी सुंदरता को हथियार बना कर अंजाम दे दिया गया. सबके नजरिए में लेकिन सुंदरता के अलग-अलग रूप होते हैं. सवाल ये है कि हम किसे महत्व देते हैं, मन की सुंदरता या तन की सुंदरता. वैसे इस मायानगरी में सबसे ज्यादा महत्व तन की सुंदरता को ही मिला है. अपने आसपास देखता हूं, तो पाता कि कई बुद्धिजीवी और टैलेंटेड लोग इसी के चक्कर में बौराए फिरते हैं. अब फेसबुक को ले लिजिए. कोई लड़की किसी खूबसूरत चेहरे को चिपका कर अपने दोस्तों की संख्य चार हजार तक कर लेती है. उसके पास फ्रेंड रिक्वेस्ट की बाढ़ सी आ जाती है. हमें आज तक कोई ऐसा फरिश्ता नजर नहीं आया, जो इस माया से बचने का उपाय बता सके. पश्चिमी देशों में जिस छरहरी काया के प्रति दीवानगी रहती है, हमारे इंडिया में उसे लेकर लोग नजरें फेर लेते हैं. हां, दो-चार केसेस में इस बात को मान्यता मिल जाती है, लेकिन ज्यादातर मामलों में छरहरी काया को तवज्जों नहीं दिया जाता. वैसे ये सुंदरता भी बस समय के फेर पर निर्भर करता है. जब तक जवानी है, सुंदरता है. जिस दिन जवानी गयी, झुर्रियों से पूरा चेहरा भर जाएगा. इसलिए सुंदरता के चक्कर में फंसने से पहले होश संभालना जरूरी है. कई सुंदर चेहरे मन से सुंदर हो सकते हैं, लेकिन वे सुंदर होना नहीं चाहते. इस कारण सोसाइटी का जो हाल हो रहा है, वह हम-आप देख सकते हैं.
Saturday, February 19, 2011
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2 comments:
isi liye hamare hero-heroine poora laabh uthaate hain..
यही समस्या है, सुन्दरता दैहिक हो गयी है।
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