Friday, March 25, 2011

एक बेहतर टीम वर्ल्ड कप से बाहर हुई और बेहतर खेल के साथ.


क्रिकेट ज्यादा नहीं जानता. लेकिन क्रिकेट के बारे में कुछ-कुछ जानता हू. ये जानता हूं कि ये ऐसा गेम है, जिसमें कब क्या हो जाए, कोई नही जानता है. जावेद मियांदाद का छक्का आज भी उसी तरह दिलोदिमाग पर छाया है, जैसे कल की बात हो. कल जब रिकी पोंटिंग का चेहरा खेल के अंत में देख रहा था, तो एक निराश हो चुके योद्धा के दिल की धड़कनों को साफ महसूस कर रहा था.

आस्ट्रेलिया को हराने के बाद हम इतना चहके हैं कि पाकिस्तान के साथ जीत या हार की बात बेमानी हो चुकी है.सबसे बड़ा सवाल ये है कि आज की तारीख में आस्ट्रेलिया हमारे लिये क्यों इतना महत्वपूर्ण हो गया. आस्ट्रेलिया में हार की ठिकरा पोटिंग पर फूट रहा है. वहां पोंटिंग के खिलाफ हेडलाइंस लग रहे हैं. लेकिन हम भूल जाते हैं कि आस्ट्रेलिया ने ही हमारे अंदर के सोये हुए शेर को जगाया है.

किस्सा यूं है कि आस्ट्रेलिया के साथ भिड़ंत के पूर्व तक हम लोग एक भले और संत आदमी थे. हम हार को उसी हिसाब से स्वीकार कर लेते थे, जैसे कि एक भाग्यवादी अपने हिस्से में आयी हर चीज को स्वीकार करता है. लेकिन इस दुनिया में जीतता वही है, टिकता वही है, जिसमें अंत तक लड़ने का जज्बा हो. इंडियन टीम ने आज की तारीख में लड़ना सीख लिया है.

महेंद्र सिंह धौनी का अपने प्लेयरों पर भरोसा काम दे रहा है. भरोसा ये कि वे जरूर परफार्म करेंगे. कुछ कर दिखाने का भरोसा हमेशा काम देता है. रैना के मामले में वही हुआ. जब सारे सितारे चले गए, तो रैना युवराज के हमसफर बनकर उतरे. मुझे एक बात पर हंसी आती है कि इंडिया मीडिया खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया अपनी समीक्षा में इतना सतही कैसे हो जाता है. याद कीजिए वेस्टइंडीज से जीत का वक्त और साउथ अफ्रीका से हार का दिन. मीडिया ने पीयूष चावला को लेकर इतना कुछ कहा लिखा. लेकिन आस्ट्रेलिया के साथ जीत के बाद उसके सुर बदल गए. ये प्रवृत्ति खतरनाक है. हमारे यहां सबसे बड़ी बात है कि हमने क्रिकेट को क्रिकेट नहीं रहने दिया है.

हमारी भावना, हमारे जज्बात कुछ ऐसे हो जाते हैं कि हम विरोधी टीमों को दुश्मन मान बैठते हैं. ऐसे में युवराज के द्वारा मैच के बाद प्रेस कान्फ्रेंस में ये कहना कि गेम टीम खेलती है. ये कोई इंडिविजुअल एफर्ट से नहीं जीता जा सकता है, काफी बातों को साफ कर देता है. साथ ही ये कि मैं न होता, तो कोई और होता. हमें ये मान कर चलना होगा कि हमारे खिलाड़ी जरूर अंतिम समय तक अपनी मारक क्षमता के साथ खेलें, लेकिन जीत के प्रति ऐसी अंधभक्ति  का प्रदर्शन नहीं करें कि दुनिया भी हमारी हार पर उसी प्रकार झूमे, जैसा कल हम आस्ट्रेलिया को हराने के बाद झूम रहे थे. मैं इससे इनकार नहीं करता हूं कि आस्ट्रेलिया ने कई बार अपनी बातों और रुखे रवैये से हमारी अंतरात्मा को रौंदा है. इस कारण हम आस्ट्रेलिया को हराने के लिए इस हद तक जुनूनी हो गए कि जज्बातों को किनारे लगा दिया. वैसे एक बेहतर टीम वर्ल्ड कप से बाहर हुई और बेहतर खेल के साथ.

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

खेल सब मिलकर खेलते हैं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पर्दे के पीछे तो कुछ नहीं..

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